"रानी लक्ष्मीबाई": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Ranilaxmibai-1.JPG|200px|left|thumb|रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा]]
 
लक्ष्मीबाई का जन्म [[वाराणसी]] में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा [[बाजीराव द्वितीय]] के दरबार में ले जाने लगे,लगे। जहाँ, चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली।<ref>{{cite web|url= http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/kbhu_v06.htm|title=काशी की विभूतियाँ|archive-date=4 अक्टूबर 2009|format= एचटीएम|publisher=टीडिल|language=|archive-url=https://web.archive.org/web/20091004114117/http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/kbhu_v06.htm}}</ref> सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद [[२१ नवम्बर|21 नवम्बर]] [[१८५३|1853]] को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।<ref name=":0" />
 
[[ब्रिटिश राज|ब्रितानी राज]] ने अपनी [[व्यपगत का सिद्धान्त|राज्य हड़प नीति]] के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया। हालांकि मुक़दमे में बहुत बहस हुई, परन्तु इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप रानी को झाँसी का क़िला छोड़कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।<ref>{{Cite web|url=https://satyagrah.scroll.in/article/107570/rani-laxmi-bai-rani-of-jhanshi-life-history|title=रानी लक्ष्मीबाई : झांसी की वह तलवार जिसके अंग्रेज भी उतने ही मुरीद थे जितने हम हैं|last=भारद्वाज|first=पुलकित|website=Satyagrah|language=hi-IN|access-date=2020-06-22|archive-url=https://web.archive.org/web/20200515092842/https://satyagrah.scroll.in/article/107570/rani-laxmi-bai-rani-of-jhanshi-life-history|archive-date=15 मई 2020|url-status=dead}}</ref>
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1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य [[ओरछा]] तथा [[दतिया]] के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर [[कालपी]] पहुँची और [[तात्या टोपे]] से मिली।<ref>{{Cite web|url=https://www.jagran.com/news/national-in-just-29-years-the-foundation-of-the-english-rule-was-shaken-jagran-special-19320473.html|title=मात्र 29 साल में हिला दी थी अंग्रेजी शासन की नींव, जानिए कौन थी वीरांगना|website=Dainik Jagran|language=hi|access-date=2020-06-22|archive-url=https://web.archive.org/web/20190618142653/https://www.jagran.com/news/national-in-just-29-years-the-foundation-of-the-english-rule-was-shaken-jagran-special-19320473.html|archive-date=18 जून 2019|url-status=live}}</ref>
 
तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने [[ग्वालियर]] के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। [[बाजीराव प्रथम]] के वंशज [[अली बहादुर द्वितीय]] ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए। 1718 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी।<ref>^ David, Saul (2003), The Indian Mutiny: 1857, Penguin, London p367</ref>
 
== चित्र दीर्घा ==