"श्रमण परम्परा": अवतरणों में अंतर
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<ref>{{https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=3438959282861195&id=100002414721393 cite web |title=shramana movement |website=wikipedia}}</ref>'''समण परम्परा''' [[भारत]] में प्राचीन काल से [[जैन धर्म|जैन]], [[आजीविक]], [[चार्वाक]], तथा [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] दर्शनों में पायी जाती है। ये वैदिक धारा से काफी पूर्व व बाहर की मानी जाती है। इसलिए बौद्ध या जैन भिक्षु या साधु को पाली भाषा मे '''समण''' कहते हैं, जिस समण को आज के तथाक्तित लोग संस्कारित भाषा का श्रवण कर दिए है।
श्रवण का अर्थ सुनना होता है। जबकि बौद्ध व जैन परंपरा सुनी सुनाई बातों पर नही चलती है।
उस परंपरा का मूलाधार अपने अंदर के विकारों को नष्ट करने से है, इसी वजह से उस परंपरा को समण परंपरा कहा जाना ज्यादा उपयुक्त है।
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