"विक्रम संवत": अवतरणों में अंतर
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'विक्रम संवत' के उद्भव एवं प्रयोग के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मान्यता है कि '[[विक्रमादित्य]]' नामक
[[फ़ारसी]] ग्रंथ 'कलितौ दिमनः' में [[पञ्चतन्त्र|पंचतंत्र]] का एक पद्य 'शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनम्' का भाव उद्धृत है। विद्वानों ने सामान्यतः 'कृत संवत' को 'विक्रम संवत' का पूर्ववर्ती माना है। किन्तु 'कृत' शब्द के प्रयोग की सन्तोषजनक व्याख्या नहीं की जा सकी है। कुछ शिलालेखों में [[मालवगण]] का संवत उल्लिखित है, जैसे- [[नरवर्मन|नरवर्मा]] का [[मन्दसौर शिलालेख]]। 'कृत' एवं 'मालव' संवत एक ही कहे गए हैं, क्योंकि दोनों पूर्वी [[राजस्थान]] एवं पश्चिमी [[मालवा]] में प्रयोग में लाये गये हैं। कृत के २८२ एवं २९५ वर्ष तो मिलते हैं, किन्तु मालव संवत के इतने प्राचीन शिलालेख नहीं मिलते। यह भी सम्भव है कि कृत नाम पुराना है और जब मालवों ने उसे अपना लिया तो वह 'मालव-गणाम्नात' या 'मालव-गण-स्थिति' के नाम से पुकारा जाने लगा। किन्तु यह कहा जा सकता है कि यदि 'कृत' एवं 'मालव' दोनों बाद में आने वाले विक्रम संवत की ओर ही संकेत करते हैं, तो दोनों एक साथ ही लगभग एक सौ वर्षों तक प्रयोग में आते रहे, क्योंकि हमें ४८० कृत वर्ष एवं ४६१ मालव वर्ष प्राप्त होते हैं।
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