"मीरा बाई": अवतरणों में अंतर
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<br />[[File:Meerabai painting.jpg|मीराबाई का चित्र|thumb]]
'''मीराबाई''' (1498-1573) सोलहवीं शताब्दी की एक [[कृष्ण]] भक्त और [[कवि|कवयित्री]] थीं। उनकी कविता कृष्ण भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो जाती है।<ref>राजीवरंजन मीराबाई: समनन
सन्दर्भ में वागर्थ (सम्पादक) एकांत श्रीवास्तव जुलाई २०१२ कोलकाता</ref> मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। मीरा कृष्ण की भक्त हैं।
== जीवन परिचय ==
[[चित्र:Temple of Mirabai in the fort.jpg|thumbnail|मीराबाई का मंदिर, [[चित्तौड़गढ़]] (१९९०)]]
मीराबाई का जन्म सन 1498 ई. में [[पाली]] के कुड़की गांव में में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। ये बचपन से ही [[कृष्ण]]भक्ति में रुचि लेने लगी थीं। मीरा का [[विवाह]] मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। [[उदयपुर]] के महाराजा भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के [[राणा सांगा|महाराणा सांगा]] के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। मीरा के पति का अंतिम संस्कार
वे विरक्त हो गई और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगी। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थी। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को [[विष]] देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह [[द्वारका]] और [[वृन्दावन]] गई। वह जहाँ जाती थी, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उन्हे देवी के जैसा प्यार और सम्मान देते थे। मीरा का समय बहुत बड़ी राजनैतिक उथल-पुथल का समय रहा है। बाबर का हिंदुस्तान पर हमला और प्रसिद्ध [[खानवा का युद्ध]] उसी समय हुआ था। इस सभी परिस्तिथियों के बीच मीरा का रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुण पद्धत्ति
== इन्हें भी देखें==
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