"सूर्य देवता": अवतरणों में अंतर
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==सूर्य ग्रह सम्बन्धी अन्य विवरण==
सूर्य प्रत्यक्ष [[देवता]] है,सम्पूर्ण [[जगत]] के [[नेत्र]] हैं.इन्ही के द्वारा दिन और रात का सृजन होता है.इनसे अधिक निरन्तर साथ रहने वाला और कोई [[देवता]] नही है.इन्ही के [[उदय]] होने पर सम्पूर्ण [[जगत]] का [[उदय]] होता है,और इन्ही के [[अस्त]] होने पर समस्त [[जगत]] सो जाता है.इन्ही के उगने पर लोग अपने घरों के किवाड खोल कर आने वाले का [[स्वागत]] करते हैं,और [[अस्त]] होने पर अपने घरों के किवाड बन्द कर लेते हैं.सूर्य ही [[कालचक्र]] के प्रणेता है.सूर्य से ही [[दिन]] [[रात]] [[पल]] [[मास]] [[पक्ष]] तथा [[संवत]] आदि का विभाजन होता है.सूर्य सम्पूर्ण संसार के [[प्रकाशक]] हैं.इनके बिना अन्धकार के अलावा और कुछ नही है.सूर्य [[आत्माकारक]] [[ग्रह]] है,यह [[राज्य]] सुख,[[सत्ता]],[[ऐश्वर्य]],[[वैभव]],[[अधिकार]],आदि प्रदान करता है.यह [[सौरमंडल]] का
*जो जातक अपनी [[शक्ति]] और [[अंहकार]] से चूर होकर जानते हुए भी निन्दनीय कार्य करते हैं,दूसरों का [[शोषण]] करते हैं,और माता पिता की सेवा न करके उनको नाना प्रकार के कष्ट देते हैं,सूर्य उनके इस कार्य का भुगतान उसकी [[विद्या]],[[यश]],और [[धन]] पर पूर्णत: रोक लगाकर उसे बुद्धि से दीन हीन करके पग पग पर अपमानित करके उसके द्वारा किये गये कर्मों का भोग करवाता है.आंखों की रोशनी का अपने प्रकार से हरण करने के बाद भक्ष्य और अभक्ष्य का भोजन करवाता है,ऊंचे और नीचे स्थानों पर गिराता है,चोट देता है.
*श्रेष्ठ कार्य करने वालों को [[सदबुद्धि]],[[विद्या]],[[धन]],और [[यश]] देकर जगत में नाम देता है,लोगों के अन्दर [[इज्जत]] और [[मान]] [[सम्मान]] देता है.उन्हें उत्तम [[यश]] का भागी बना कर भोग करवाता है.जो लोग [[आध्यात्म]] में अपना मन लगाते हैं,उनके अन्दर [[भगवान]] की छवि का रसस्वादन करवाता है.सूर्य से लाल स्वर्ण रंग की किरणें न मिलें तो कोई भी [[वनस्पति]] उत्पन्न नही हो सकती है.इन्ही से यह [[जगत]] स्थिर रहता है,[[चेष्टाशील]] रहता है,और सामने दिखाई देता है.
*[[जातक]] अपना हाथ देख कर अपने बारे में स्वयं निर्णय कर सकता है,यदि [[सूर्य रेखा]] हाथ में बिलकुल नही है,या मामूली सी है,तो उसके फ़लस्वरूप उसकी [[विद्या]] कम होगी,वह जो भी पढेगा वह कुछ कल बाद भूल जायेगा,[[धनवान]] [[धन]] को नही रोक पायेंगे,पिता पुत्र में विवाद होगा,और अगर इस रेखा में [[द्वीप]] आदि है तो निश्चित रूप से गलत इल्जाम लगेंगे.[[अपराध]] और कोई करेगा और [[सजा]] [[जातक]] को भुगतनी पडेगी.
*सूर्य क्रूर ग्रह भी है,और [[जातक]] के स्वभाव में तीव्रता देता है.यदि [[ग्रह]] [[तुला राशि]] में नीच का है तो वह तीव्रता [[जातक]] के लिये [[घातक]] होगी,दुनियां की कोई [[औषिधि]],[[यंत्र]],[[जडी]],[[बूटी]] नही है जो इस तीव्रता को कम कर सके.केवल सूर्य [[मंत्र]] में ही इतनी [[शक्ति]] है,कि जो इस तीव्रता को कम कर सकता है.
*सूर्य [[जीव]] मात्र को [[प्रकाश]] देता है.जिन
===सूर्य ग्रह से प्रदान किये जाने वाले रोग===
[[जातक]] के गल्ती करने और आत्म विश्लेषण के बाद जब निन्दनीय कार्य किये जाते हैं,तो सूर्य उन्हे बीमारियों और अन्य तरीके से प्रताडित करने का काम करता है,सबसे बडा [[रोग]] निवारण का उपाय है कि किये जाने वाले गलत और निन्दनीय कार्यों के प्रति पश्चाताप,और फ़िर से नही करने की [[कसम]],और जब प्रायश्चित कर लिया जाय तो रोगों को निवारण के लिये [[रत्न]],[[जडी]],बूटियां,आदि धारण की जावें,और मंत्रों का नियमित जाप किया जावे.सूर्य [[ग्रह]] के द्वारा प्रदान कियेजाने वाले रोग है- [[सिर दर्द]],[[बुखार]],नेत्र विकार,[[मधुमेह]],[[मोतीझारा]],[[पित्त रोग]],[[हैजा]],[[हिचकी]].
यदि [[औषिधि]] सेवन से भी रोग ना जावे तो समझ लेना कि सूर्य की दशा या
==सूर्य ग्रह के रत्न उपरत्न ==
सूर्य ग्रह के रत्नों मे माणिक और उपरत्नो में लालडी, तामडा,और महसूरी.पांच रत्ती का रत्न या उपरत्न रविवार को कृत्तिका नक्षत्र में अनामिका उंगली में सोने में धारण करनी चाहिये.इससे इसका दुष्प्रभाव कम होना चालू हो जाता है.और अच्छा रत्न पहिनते ही चालीस प्रतिशत तक फ़ायदा होता देखा गया है.रत्न की विधि विधान पूर्वक उसकी ग्रहानुसार प्राण प्रतिष्ठा अगर नही की जाती है,तो वह रत्न प्रभाव नही दे सकता है.इसलिये रत्न पहिनने से पहले अर्थात अंगूठी में जडवाने से पहले इसकी प्राण प्रतिष्ठा करलेनी चाहिये.क्योंकि पत्थर तो अपने आप में पत्थर ही है,जिस प्रकार से मूर्तिकार मूर्ति को तो बना देता है,लेकिन जब उसे मन्दिर में स्थापित किया जाता है,तो उसकी विधि विधान पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद ही वह मूर्ति अपना असर दे सकती है.इसी प्रकार से अंगूठी में रत्न तभी अपना असर देगा जब उसकी विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी.
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