"कला": अवतरणों में अंतर

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कला शब्द का प्रयोग शायद सबसे पहले [[भरत मुनि|भरत]] के "[[नाट्य शास्त्र|नाट्यशास्त्र]]" में ही मिलता है। पीछे [[वात्स्यायन]] और [[उशनस्]] ने क्रमश: अपने ग्रंथ "[[कामसूत्र]]" और "[[शुक्रनीति]]" में इसका वर्णन किया।
 
"[[कामसूत्र]jklk]", "[[शुक्रनीति]]", जैन ग्रंथ "प्रबंधकोश", "कलाविलास", "[[ललितविस्तर सूत्र|ललितविस्तर]]" इत्यादि सभी भारतीय ग्रंथों में कला का वर्णन प्राप्त होता है। अधिकतर ग्रंथों में कलाओं की संख्या 64 मानी गयी है। "प्रबंधकोश" इत्यादि में 72 कलाओं की सूची मिलती है। "[[ललितविस्तर सूत्र|ललितविस्तर]]" में 86 कलाओं के नाम गिनाये गये हैं। प्रसिद्ध कश्मीरी पंडित [[क्षेमेंद्र]] ने अपने ग्रंथ "[[कलाविलास]]" में सबसे अधिक संख्या में कलाओं का वर्णन किया है। उसमें 64 जनोपयोगी, 32 धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, सम्बन्धी, 32 मात्सर्य-शील-प्रभावमान सम्बन्धी, 64 स्वच्छकारिता सम्बन्धी, 64 वेश्याओं सम्बन्धी, 10 भेषज, 16 कायस्थ तथा 100 सार कलाओं की चर्चा है। सबसे अधिक प्रामाणिक सूची "कामसूत्र" की है।
 
[[यूरोपीय साहित्य]] में भी कला शब्द का प्रयोग शारीरिक या मानसिक कौशल के लिए ही अधिकतर हुआ है। वहाँ [[प्रकृति]] से कला का कार्य भिन्न माना गया है। कला का अर्थ है रचना करना अर्थात् वह [[कृत्रिम]] है। प्राकृतिक सृष्टि और कला दोनों भिन्न वस्तुएँ हैं। कला उस कार्य में है जो मनुष्य करता है। कला और [[विज्ञान]] में भी अंतर माना जाता है। [[विज्ञान]] में ज्ञान का प्राधान्य है, कला में कौशल का। कौशलपूर्ण मानवीय कार्य को कला की संज्ञा दी जाती है। कौशलविहीन या बेढब ढंग से किये गये कार्यों को कला में स्थान नहीं दिया जाता।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कला" से प्राप्त