"सूर्यसिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:File:1st verse of the 1st chapter of the Surya Siddhanta Hindu astronomy, 1847 Sanskrit manuscript edition.jpg|right|thumb|300px|सूर्यसिद्धान्त के प्रथम श्लोक्क में रचनाकार ने ब्रह्म को नमस्कार करते हुए उसे अचिन्त्य, अव्यक्तरूप, निर्गुण, गुणात्मन, और समस्त जगत का आधार बताया है।]]
'''सूर्यसिद्धान्त ''' [[भारतीय खगोलिकी|भारतीय खगोलशास्त्र]] का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई [[सिद्धान्त]]-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं।