"सूर्यसिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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इस ग्रंथ में वर्णित समय-चक्र विलक्षण रूप से विशुद्ध थे। हिन्दू ब्रह्माण्डीय समय चक्र सूर्य सिद्धांत के पहले अध्याय के श्लोक 11–23 में आते हैं।<ref>cf. Burgess.</ref>:
 
"('''श्लोक 11'''). - वह जो कि श्वास (प्राण) से आरम्भ होता है, यथार्थ कहलाता है; और वह जो त्रुटि से आरम्भ होता है, अवास्तविक कहलाता है। छः श्वास से एक विनाड़ी बनती है। साठ श्वासों से एक नाड़ी बनती है।
 
('''श्लोक 12'''). - और साठ नाड़ियों से एक दिवस (दिन और रात्रि) बनते हैं। तीस दिवसों से एक मास (महीना) बनता है। एक नागरिक (सावन) मास सूर्योदयों की संख्याओं के बराबर होता है।
 
('''श्लोक 13'''). - एक चंद्र मास, उतनी चंद्र तिथियों से बनता है। एक सौर मास सूर्य के राशि में प्रवेश से निश्चित होता है। बारह मास एक वरष बनाते हैं। एक वरष को देवताओं का एक दिवस कहते हैं।
 
('''श्लोक 14'''). - देवताओं और दैत्यों के दिन और रात्रि पारस्परिक उलटे होते हैं। उनके छः गुणा साठ देवताओं के (दिव्य) वर्ष होते हैं। ऐसे ही दैत्यों के भी होते हैं।
 
('''श्लोक 15'''). - बारह सहस्र (हज़ार) दिव्य वर्षों को एक [[चतुर्युग]] कहते हैं। एक चतुर्युग तिरालीस लाख बीस हज़ार सौर वर्षों का होता है।
 
('''श्लोक 16''') - चतुर्युगी की उषा और संध्या काल होते हैं। [[सत्य युग|कॄतयुग]] या [[सत्य युग|सतयुग]] और अन्य युगों का अन्तर, जैसे मापा जाता है, वह इस प्रकार है, जो कि चरणों में होता है:
 
('''श्लोक 17'''). - एक चतुर्युगी का दशांश को क्रमशः चार, तीन, दो और एक से गुणा करने पर कॄतयुग और अन्य युगों की अवधि मिलती है। इन सभी का छठा भाग इनकी उषा और संध्या होता है।
 
('''श्लोक 18'''). - इकहत्तर चतुर्युगी एक [[मन्वन्तर]] या एक मनु की आयु होते हैं। इसके अन्त पर संध्या होती है, जिसकी अवधि एक सतयुग के बराबर होती है और यह [[प्रलय]] होती है।
 
('''श्लोक 19'''). - एक [[कल्प]] में चौदह मन्वन्तर होते हैं, अपनी संध्याओं के साथ; प्रत्येक कल्प के आरम्भ में पंद्रहवीं संध्या/उषा होती है। यह भी सतयुग के बराबर ही होती है।
 
('''श्लोक 20'''). - एक कल्प में, एक हज़ार चतुर्युगी होते हैं और फ़िर एक प्रलय होती है। यह [[ब्रह्मा]] का एक दिन होता है। इसके बाद इतनी ही लम्बी रात्रि भी होती है।
 
('''श्लोक 21'''). - इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु एक सौ वर्ष होती है; उनकी आधी आयु निकल चुकी है और शेष में से यह प्रथम कल्प है।
 
('''श्लोक 22'''). - इस कल्प में, छः मनु अपनी संध्याओं समेत निकल चुके, अब सातवें मनु (वैवस्वत: विवस्वान (सूर्य) के पुत्र) का सत्तैसवां चतुर्युगी बीत चुका है।
 
('''श्लोक 23'''). - वर्तमान में, अट्ठाईसवां चतुर्युगी का कॄतयुग बीत चुका है।........
 
;इस खगोलीय समय चक्र का आकलन करने पर, निम्न परिणाम मिलते हैं: