"गुरु तेग़ बहादुर": अवतरणों में अंतर
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{{सिक्खी}}
'''गुरू तेग़ बहादुर''' (1 अप्रैल 1621 –
{| class="toccolours" style="float: right; margin-left: 1em; margin-right: 2em; font-size: 85%; background:#c6dbf7; color:black; width:40em; max-width: 50%;" cellspacing="5"
| style="text-align: left;" | "धरम हेत साका जिनि कीआ<br />सीस दीआ पर सिरड न दीआ।"
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आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग़ बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे।
: ''तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥
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