"विराटनगर, राजस्थान": अवतरणों में अंतर

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== दर्शनीय स्थल ==
यह स्थल [[राजा विराट]] के [[मत्स्य राज|मत्स्य प्रदेश]] की राजधानी के रूप में विख्यात था। यही पर पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का समय व्यतीत किया था। [[महाभारत कालीन]] स्मृतियों के भौतिक अवशेष तो अब यहां नहीं रहे किंतु यहां ऐसे अनेक चिन्ह हैं जिनसे पता चलता है कि यहां पर कभी [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] एवं जैन सम्प्रदाय के अनुयायियों का विशेष प्रभाव था। विराट नगर, जिसे पूर्व में बैराठ के नाम से भी जाना जाता था, के दक्षिण की ओर बीजक पहाड़ी है।
 
इस के ऊपर दो समतल मैदान हैं यहां पर व्यवस्थित तरीके से रास्ता बनाया गया है। इस मैदान के मध्य में एक गोलाकार परिक्रमा युक्त ईंटों का मन्दिर था जो आयताकार चार दीवारी से घिरा हुआ था। इस मन्दिर के गोलाकार भीतरी द्वार पर 27 लकड़ी के खम्भे लगे हुए थे। ये अवशेष एक बौद्ध स्तूप के हैं जिसे [[साँची का स्तूप|सांची]] व [[सारनाथ]] के बौद्ध स्तूपों की तरह गुम्बदाकार बनाया गया था।
 
यह बौद्ध मंदिर गोलाकार ईंटों की दीवार से बना हुआ था, जिसके चारों तरफ 7 फीट चौड़ी गैलरी है। इस गोलाकार मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व की तरफ खुलता हुआ 6 फीट चौड़ा है। बाहर की दीवार 1 फीट चौड़ी ईंटों की बनी हुई है। इसी प्लेटफार्म पर [[बौद्ध भिक्षु]] एवं भिक्षुणियों आदि के चिंतन-मनन करने हेतु श्रावक गृह बने हुए थे।
 
यहां बनी 12 कोठरियों के अलावा अन्य कई कोठरियों के अवशेष भी चारों तरफ देखे जा सकते हैं। ये कोठरियां साधारणतया वर्गाकार रूप में बनाई जाती थीं। इन पर किए गए निर्माण कार्यों पर सुंदर आकर्षक प्लास्टर किया जाता था। इस प्लेटफार्म के बीच में पश्चिम की तरफ शिला खण्डों को काटकर गुहा-गृह बनाया गया था जो दो तरफ से खुलता था। इसमें भी भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों के निवास का प्रबंध किया गया था। इस गुहा गृह के नीचे एक चट्टान काटकर कुन्ड अर्थात् टंकी भी बनाई गई है जिसमें पूजा व पीने के लिए पानी इकट्ठा किया जाता था।
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=== पावन धाम ===
महान हिन्दू संत, गोभकत [[महात्मा रामचन्द्र वीर]] द्वारा स्थापित पावन धाम पंचंखंड पर्वत पर वज्रांग मंदिर भी यही स्थापित है। इस मंदिर के विषय में सबसे महत्वपूर्ण बात ये हैं कि यहाँ [[हनुमान]] जी जाति [[वानर]] मानी गयी है, तन से उनको मानव सामान माना गया है। यह [[महात्मा रामचन्द्र वीर]] की जन्मभूमि भी है।
 
== इन्हें भी देखें ==