"दो आँखें बारह हाथ (1957 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर

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'''दो आँखें बारह हाथ''' 1957 में बनी [[हिन्दी|हिन्दी भाषा]] की फिल्म है।
== संक्षेप ==
शांताराम की गांधीवादी फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ में एक खुली जेल में गुनाह और सजा को नए ढंग से परिभाषित करने का प्रयास किया गया। पारंपरिक जेलखानों में खतरनाक और हिंसा कैदियों को अंडाकार कक्ष में रखा जाता है। कक्ष अत्यंत छोटा होता और उसमें पसरा नहीं जा सकता। राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘संजू’ में अंडाकार कक्ष प्रस्तुत किया गया था। इसी तरह अंग्रेजी में बनी फिल्म ‘शशांक रीडम्पशन’ में भी जेल जीवन पर प्रकाश डाला गया है। कभी-कभी पूरे देश को ही खुली जेल में बदल दिया जाता है। अघोषित आपातकाल भी होता है। पुरातन आख्यानों में कोप भवन का विवरण है। परिवार का सदस्य अपनी नाराजगी जताने के लिए कोप भवन में बैठ जाता था। मिल-जुलकर समाधान खोजा जाता था। मुगल बादशाह अकबर ने मनुष्य की स्वाभाविक भाषा को जानने के लिए एक ‘गूंगा महल’ बनवाया था, जिसमें सेवक चाकरों को आदेश था कि एक भी शब्द नहीं बोलें। वे जानना चाहते थे कि मनुष्य की स्वाभाविक भाषा क्या है। ‘गूंगा महल’ में जन्मा शिशु, सियार, गीदड़ आदि जानवरों की भाषा बोलने लगा, क्योंकि उसने केवल यही सुना था। सारांश यह है कि मनुष्य अपने आसपास जो भाषा सुनता है, वही भाषा बोलने लगता है। क्वॉरेंटाइन शब्द सुर्खियों में है, इसका शाब्दिक अर्थ तो 40 दिन अलग-थलग रहना है। यह भी एक प्रकार की जेल है। सन् 1918 में ‘इन्फ्लूएंजा’ नामक वायरस से विश्व की 27 प्रतिशत आबादी प्रभावित हुई थी। क्या उस महामारी को पहले विश्व युद्ध का प्रभाव माना जा सकता है? युद्ध एक समस्या है, उसे समाधान कैसे मान सकते हैं? उस महामारी को जाने क्यों ‘स्पैनिश इन्फ्लूएंजा’ कहा जाता था। संभवत: उस महामारी का प्रारंभ स्पेन में हुआ था। ज्ञातव्य है कि महान लेखक हेमिंग्वे स्पेन के ग्रह युद्ध में स्वेच्छा से शामिल हुए थे। बाद में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि स्पैनिश भाषा में सबसे अधिक मौलिक अपशब्द हैं और इसी भाषा की रक्षा के लिए वे बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह कूद गए थे। दक्षिण अफ्रीका में ‘यलो फीवर’ नामक बीमारी के कारण वहां आए हर एक यात्री को अपने देश में वैक्सीनेशन कराना आवश्यक होता है। वर्तमान समय में भी यह सावधानी वहां बरतनी होती है। कोरोना वायरस की शंका के चलते वहां मेडिकल आइसोलेशन को ही क्वॉरेंटाइन में रखना कहा जा रहा है। इस तरह किसी को अलग-थलग रखा जाना भी एक सजा की तरह होता है, जबकि आपने कोई अपराध नहीं किया है। अगर क्वॉरेंटाइन में रखे व्यक्ति से उसका मोबाइल भी जब्त कर लिया जाए तो उससे सजा काटे न कटेगी। संवादहीनता भी एक भयावह समस्या है। कुछ लोग बिना खाए रह सकते हैं, परंतु बोलने पर लगी पाबंदी सहन नहीं होती। राजनीतिक सत्ता की हू तू तू में दल बदलने वालों को भी एक तरह के क्वॉरेंटाइन में ही रखा जाता है। उन्हें सबके सामने कैसे लाया जा सकता है। यह संभव है कि इस अंतराल में उनके विचार बदल गए हों। यह खेल मेंढकों को तौलने की तरह कठिन है। लोकसभा और विधानसभाओं में राजनीतिक दल अपने सदस्यों को एक आदेश देती है जिसे ‘व्हिप’ कहते हैं। ‘व्हिप’ का अर्थ है कि कोई अपनी निजी राय नहीं रख सकता। दरअसल, सारी व्यवस्थाएं व्यक्तिगत स्वतंत्र सोच-विचार के खिलाफ हैं। उन्हें भेड़ें चाहिए, तोते चाहिए या उस तरह के मनुष्य जिन्हें झुनझुने की तरह बजाया जा सकता है। मनुष्य का अवचेतन भी क्वॉरेंटाइन कक्ष की तरह रचा जा सकता है। मशीनों की तरह मनुष्य का उत्पादन भी किया जा सकता है। वैचारिक रेजीमेंटेशन इसी को कहते हैं। एक अदृश्य सा रहने वाला ‘व्हिप’ सदैव जारी रहता है। हवा में सरसराते कोड़ों की आवाज दसों दिशाओं में गूंज रही है।
 
== चरित्र ==