"दुखी भारत": अवतरणों में अंतर
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“इस पुस्तक को संसार में उपस्थित करने के लिए अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है। मैं इसके लिए न मौलिकता का दावा करता हूँ न साहित्यिक विशेषता का। मेरी राय में अन्य लेखों से अपने मतलब की बाते खोजने, उनकी सत्यता की जांच करने और उनको प्रमाण स्वरूप उपस्थित करने की अपेक्षा किसी विषय पर एक मौलिक निबन्ध लिखना अधिक सरल है। पर मेरा सम्बन्ध एक पराधीन जाति से है और मैं, जो मिथ्या और भद्दी बातें घृणित उद्देशों को लेकर रची गई हैं और सारे संसार में फैलाई गई हैं, उनकी असत्यता सिद्ध करने के लिए और उनसे अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए यह किताब लिख रहा हूँ इसलिए मुझे लिखित प्रमाणों का सहारा लेना ही पड़ेगा।”
1927 में एक विदेशी पत्रकार, कैथरीन मेयो [[भारत]] आई । उसने एक पुस्तक लिखी "मदर इंडिया" । यह पुस्तक [[भारतीय संस्कृति]] और जीवन पर आधारित थी । उसने भारत में केवल अज्ञान और गंदगी ही देखी, कुछ भी अच्छा या सभ्य नहीं । जो लोग भारतीय स्वतंत्रता के विरोध में थे उन्होंने मेयो को इस पुस्तक के प्रकाशन के लिये धन दिया । उस पुस्तक के उत्तर में श्री लाला लाला लाजपत राय ने 'दुखी भारत' नामक यह पुस्तक लिखी । इस पुस्तक में श्री लाला लाजपत राय ने मेयो के मत-प्रचार को सटीक उत्तर दिया । इस पुस्तक में उन्होने [[भारतीय सभ्यता]] की तुलना समकालीन अमरीकी और ब्रिटेनी सभ्यता से की । उन्होंने बताया कि वहाँ भी भारत से अलग कुछ नहीं है । यह पुस्तक 1928 के भारत और वैश्विक समाज को जानने के लिये बहुत लाभकारी है।
==बाहरी
*[https://hi.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%AF%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80:%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4.pdf दुखी भारत] (हिन्दी विकीस्रोत पर)
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