"तानसेन": अवतरणों में अंतर

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==घटना ==
एक दिन जलने वालों ने तानसेन के विनाश की योजना बना डाली। इन सबने बादशाह अकबर से तानसेन से 'दीपक' राग गवाए जाने की प्रार्थना की। अकबर को बताया गया कि इस राग को तानसेन के अलावा और कोई ठीक-ठीक नहीं गा सकता। बादशाह राज़ी हो गए, और तानसेन को दीपक राग गाने की आज्ञा दी। तानसेन ने इस राग का अनिष्टकारक परिणाम बताए बिना ही राग गाने से मना कर दिया, फिर भी अकबर का राजहठ नहीं टला, और तानसेन को दीपक राग गाना ही पड़ा। दीपक राग गाने से जब तानसेन के अंदर अग्नि राग भी शुरू हुआ, गर्मी बढ़ी व धीरे-धीरे वायुमंडल अग्निमय हो गया। सुनने वाले अपने-अपने प्राण बचाने को इधर-उधर छिप गए, किंतु तानसेन का शरीर अग्नि की ज्वाला से दहक उठा। ऐसी हालत में तानसेन अपने घर भागे, वहाँ उनकी बेटियों ने मल्हार राग गाकर उनके जीवन की रक्षा की। इस घटना के कई महीनों बाद तानसेन का शरीर स्वस्थ हुआ। शरीर के अंदर ज्वर बैठ गया था। आखिरकार वह ज्वर फिर उभर आया, और फ़रवरी, 1585 में इसी ज्वर ने उनकी जान ले ली।
 
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