"राणा पूंजा": अवतरणों में अंतर

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इस संकट के काल में महाराणा प्रताप ने राणा पूंजा का सहयोग मांगा। राणा पूंजा ने मुगलों से मुकाबला करने के लिए मेवाड़ के साथ खड़े रहने का निर्णय किया। महाराणा को वचन दिया कि राणा पूंजा और सभी भील भाई मेवाड़ की रक्षा करने को तत्पर है। इस घोषणा के लिए महाराणा ने राणा पूंजा को गले लगाया और अपना भाई कहा। 1576 ई. के [[हल्दीघाटी का युद्ध|हल्दीघाटी युद्ध]] में राणा ने अपनी सारी ताकत देश की रक्षा के लिए झोंक दी <ref name=":0" /> ।
 
=== राणा पूंजा भील का सैनिक संगठन ===
राणा पूंजा के नेतृत्व में भील सेना , मेहता रतनचंद , ताराचंद , पुरोहित गोपीनाथ , जगन्नाथ , मेहसानी जगन्नाथ , केशो , जयसा , और सोनियाणा के चारण आदि शामिल थे <ref>{{cite book |last= शर्मा |first= गोपीनाथ |date= 1954 |title= Mewar and the Mughal Emperor 1526-1707 A.D |url=https://books.google.co.in/books?id=jIs9AAAAMAAJ&q=rana+punja+Followed+by&dq=rana+punja+Followed+by&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjV0t_ji6TtAhWcwzgGHSbtBicQ6AEwAXoECAMQAg |location= |publisher= S.L Agrawal |page= 94-96 |isbn= |author-link= }}</ref> । भीलू राणा के नेतृत्व में करीब 70 हजार भील हल्दीघाटी युद्ध में शामिल हुए जिनमें से 400 भील तीरंदाज थे । हल्दीघाटी युद्ध में पैदल सेना नहीं थी ।
 
 
हल्दीघाटी युद्ध में भीलो के राणा पूंजा ने अहम भूमिका निभाई, हल्दीघाटी युद्ध के अनिर्णय रहने में राणा पूंजा का अहम योगदान रहा। इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप राणा पूंजा के साथ रहे।
 
 
राणा के इस युगों-युगों तक याद रखने योग्य शौर्य के संदर्भ में ही मेवाड़ के राजचिन्ह में भील प्रतीक अपनाया गया है।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=zk6OAAAAMAAJ|title=Politics, development & modernization in tribal India: a study of Bhil village panchayat in Rajasthan|last=Ram|first=Gordhan|date=2001|publisher=Manak Publications|isbn=978-81-7827-026-5|language=en}}</ref>