"जरासन्ध": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:A painting from the Mahabharata Balabhadra fighting Jarasandha.jpg|thumb|[[बलभद्र]] और जरासंध के बीच युद्ध]]
'''जरासंध भगवान''' [[महाभारत]] कालीन मगध राज्य के नरेश थे । सम्राट जरासंध भगवान ने बहुत से अन्यायी राजाओं को अपने कारागार में बंदी बनाकर रखा था ,पर उसने किसी को भी मारा नहीं था। इसका कारण यह था, कि वह चक्रवर्ती सम्राट बनने की लालसा हेतु ही वह इन राजाओं को बंदी बनाकर रख रहा था ,ताकि जिस दिन 101 राजा हों और वे महादेव को प्रसन्न करने के जिससेलिए उनकी प्रजाबलि परेशानदे थी।।सके।
 
वह मथुरा के नरेश [[कंस]] का ससुर एवं परम मित्र था उसकी दोनो पुत्रियो आसित एव्म प्रापित का विवाह कंस से हुआ था। [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] से कंस के वध का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने १७ बार मथुरा पर चढ़ाई की लेकिन जिसके कारण भगवान श्रीकृष्ण को मथुरा छोड़ कर जाना पड़ा फिर वो द्वारिका जा बसे, तभी उनका नाम रणछोड़ कहलाया। मगध सम्राट जरासंध महाराज एक वीर और कुशल शासक थे।।
 
 
 
 
 
 
 
वह मथुरा के नरेश [[कंस]] का ससुर एवं परम मित्र था उसकी दोनो पुत्रियो आसित एव्म प्रापित का विवाह कंस से हुआ था। [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] से कंस के वध का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने १७ बार मथुरा पर चढ़ाई की लेकिन जिसके कारण भगवान श्रीकृष्ण को मथुरा छोड़ कर जाना पड़ा फिर वो द्वारिका जा बसे, तभी उनका नाम रणछोड़ कहलाया। मगध सम्राट जरासंध महाराज एक वीर और कुशल शासक थे।।
 
== जन्म ==
माना जाता है कि जरासंध के पिता मगधनरेश बृहद्रथ थे और उनकी दो पटरानियां थी। वह दोनो ही को एकसमान चाहते थे। बहुत समय व्यतीत हो गया और वे बूढ़े़ हो चले थे, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। तब एक बार उन्होंने सुना की उनके राज्य में ऋषि चंडकौशिक पधारे हुए हैं और वे एक आम के वृक्ष के नीचे विराजमान हैं। यह सुनते ही राजन आशापूर्ण होकर ऋषि से मिलने चल दिए। ऋषि के पास पहुँच कर उन्होंने ऋषि को अपना दुख कह सुनाया। राजा का वृतांत सुनकर ऋषि को दया आ गई और उन्होंने नरेश को एक आम दिया और कहा की इसे अपनी रानी को खिला देना। लेकिन चूंकि उनकी दो पत्नीयां थी और वे दोनो ही से एक समान प्रेम करते थे, इसलिए उन्होंने उस आम के बराबर टुकड़े करके अपनी दोनो रानियों को खिला दिया। इससे दोनो रानियों को आधे-आधे पुत्र हुए। भय के मारे उन्होंने उन दोनो टुकड़ो को वन में फिकवा दिया। तभी वहाँ से जरा माता(मातानामक पार्वती) राक्षसी महादेवगुज़र केरही कहने पर बंदी माताथी। उसने ने माँस के उन दोनों लोथड़ों को देखा और उसने दायां लोथड़ा दाएं हाथ में और बायां लोथड़ा बाएं हाथ में लिया जिससे वह दोनो टुकडे जुड़ गए। और फिर जरा मातानामक राक्षसी ने उसे राजा बृहद्रथ को सौप दिया और राजभवन में दोनों रानियों की छाती से दुध उतर आया। इसीलिए उसका नाम जरासंध हुआ। सम्राट जरासंध महादेव का बहुत बड़ा भक्त था ।<ref name=":0">{{Cite web|title = टुकड़ों में पैदा हुआ था ये क्रूर इंसान, 14 दिनों तक दी भीम को टक्कर|url = http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/astrology-and-spirituality/this-cruel-man-born-in-pieces-fought-bheem-fourteen-days-1088947.html|publisher = [[राजस्थान पत्रिका]]|date = १२ जून २०१५|accessdate = १२ जून २०१५|archive-url = https://web.archive.org/web/20150612095640/http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/astrology-and-spirituality/this-cruel-man-born-in-pieces-fought-bheem-fourteen-days-1088947.html|archive-date = 12 जून 2015|url-status = dead}}</ref>
 
== मृत्यु ==