"आजीविका": अवतरणों में अंतर
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== जीविका के चयन का महत्व ==
जीविका का चुनाव जीवन का एक महत्वपूर्ण पक्ष है।
प्रतियोगिता आज के समाज के मुख्य अंग है, इसलिए जीविका की योजना बनाना ही केवल यह बताता है कि हमें जीवन में क्या करना है और हम क्या करना चाहते है? ना कि बार-बार और जल्दी-जल्दी अपने व्यवसाय अथवा कार्य को उद्देश्यहीन तरीके से बदलना।
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जिन लोगों ने माध्यमिक परीक्षा पास की है उन लोगों के लिए लिपिक अथवा विद्यालयों में प्रयोगशाला सहायक के पद पर नियुक्ति के अवसर होते हैं, क्योंकि इन पदों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता माध्यमिक कक्षा उत्तीर्ण है। वैसे इनके लिए आई। टी.आई। पॉलीटैक्निक, राज्य सचिव एवं वाणिज्यिक संस्थानों में प्रशिक्षण की विशेष सुविधएं उपलब्ध हैं। जो व्यक्ति तकनीकी अथवा कार्यालय सचिवालयों के पाठ्यक्रम में उतीर्ण हो जाता है उसे किसी कार्यशाला में तकनीकी कर्मचारी अथवा कार्यालय सहायक अथवा लेखालिपिक के पद पर नियुक्ति मिल सकती है। यदि वह कम्प्यूटर प्रचालन में निपुण है तो उसे कम्प्यूटर प्रचालक के रूप में नियुक्ति मिल सकती है।
=== स्वरोजगार
जब आप कोई रोजगार अपनाते हैं तो आप वह कार्य करते हैं जो आपका रोजगारदाता आपको सौंपता है तथा बदले में आपको मजदूरी अथवा वेतन के रूप में एक निश्चित राशि प्राप्त होती है। लेकिन कोई काम/नौकरी के स्थान पर अपना कोई कार्य कर सकते हैं तथा अपनी आजीविका कमा सकते हैं।
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* '''कला एवं काश्तकारी/शिल्प''' : जो लोग किसी कला अथवा शिल्प में प्रशिक्षण प्राप्त हैं वह भी स्व रोजगार ही है। इनके व्यवसाय हैं - सुनार, लोहार, बढ़ई आदि।
== सवेतन की वरीयता में स्वरोजगार
स्वरोजगार, अक्सर सवेतन से निम्न कारणों से बेहतर माना जाता है :
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* स्वरोजगार में एक व्यक्ति ‘कार्य पर’ रह कर कई चीजे सीखता है क्योंकि उसे अपने व्यवसाय से सम्बन्धित अपने फायदे के लिए सभी निर्णय स्वयं लेने होते हैं।
== स्वरोजगार में सफलता के लिए आवश्यक गुण
* '''बौद्धिक योग्यताएं''' : आप यदि स्वरोजगार में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो आप में स्वरोजगार के सर्वाधिक अनुकूल अवसरों की पहचान करने की योग्यता होनी आवश्यक है। साथ ही व्यवसाय परिचालन के सम्बन्ध में निर्णय लेने तथा तरह-तरह के ग्राहकों को संतुष्ट करने की योग्यता का होना भी महत्व रखता है। पिफर समस्याओं के पूर्वानुमान एवं जोखिम उठाने की क्षमता की भी आवश्यकता है।
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रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त विभिन्न परम्परावादी अर्थशास्त्रियों के विचारों में समन्वय का परिणाम है। यह पूर्ण रोजगार की धारणा पर आधारित है। इसलिए इस सिद्धान्त के अनुसार, "पूर्ण प्रतियोगी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति एक सामान्य स्थिति होती है।" रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त के अनुसार पूर्ण रोजगार एक ऐसी स्थिति है जिसमें उन सब लोगों को रोजगार मिल जाता है जो प्रचलित मजदूरी पर काम करने को तैयार हैं। यह अर्थव्यवस्था की एक ऐसी स्थिति है जिसमें अनैच्छिक बेरोजगारी नहीं पाई जाती। लरनर के अनुसार, "पूर्ण रोजगार वह अवस्था है जिसमें वे सब लोग जो मजदूरी की वर्तमान दरों पर काम करने के योग्य तथा इच्छुक हैं, बिना किसी कठिनाई के काम प्राप्त कर लेते हैं।"
====रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की मान्यताएं
रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित हैः
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://panchjanya.com//Encyc/2017/5/15/Cover-Story.aspx नई पीढ़ी, नई उड़ान ]
* [http://eex.dcmsme.gov.in/Home.aspx भारत सरकार का डिजिटल रोजगार कार्यालय] (एम्प्लॉयमेण्ट एक्सचेंज)
* [http://shabd-braham.com/ShabdB/archive/v1i2/sbd-V1-i2-sn5.pdf हिंदी भाषा की अस्मिता : हिंदी में रोजगार की संभावनाए] (शब्द ब्रह्म)
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