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'''कालिदास''' (5 वीं शताब्दी ई.) [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] भाषा के महान [[कवि]] और [[नाटक]]कार थे।<ref>राम गोपाल, [http://books.google.co.in/books?id=HwHk-Y9S9UMC&lpg=PR3&pg=PA42#v=onepage&q&f=false Kālidāsa: His Art and Culture] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20140719183127/http://books.google.co.in/books?id=HwHk-Y9S9UMC&lpg=PR3&pg=PA42#v=onepage&q&f=false |date=19 जुलाई 2014 }} गूगल पुस्तक (अभिगमन तिथि १५.०७.२०१४)।</ref> उन्होंने भारत की [[पुराण|पौराणिक कथाओं]] और [[भारतीय दर्शन|दर्शन]] को आधार बनाकर रचनाएं की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं।<ref>हजारी प्रसाद द्विवेदी, [http://books.google.co.in/books?id=vWRXj6k1M4kC&lpg=PA157&dq=%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%A5&pg=PA123#v=onepage&q=%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%A5&f=false राष्ट्रीय कवि कालिदास ] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20140720021847/http://books.google.co.in/books?id=vWRXj6k1M4kC&lpg=PA157&dq=%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%A5&pg=PA123#v=onepage&q=%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%A5&f=false |date=20 जुलाई 2014 }}, हजारी प्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली, गूगल पुस्तक (अभिगमन तिथि १५.०७.२०१४)।</ref>
 
[[अभिज्ञानशाकुन्तलम्|अभिज्ञानशाकुंतलम्]] कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है। यह नाटक कुछ उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था। यह पूरे विश्व साहित्य में अग्रगण्य रचना मानी जाती है। [[मेघदूतम्]] कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें कवि की कल्पनाशक्ति और अभिव्यंजनावादभावाभिव्यन्जना शक्ति अपने सर्वोत्कृष्ट स्तर पर है और प्रकृति के मानवीकरण का अद्भुत रखंडकाव्ये से खंडकाव्य में दिखता है।<ref>रामजी उपाध्याय, [http://books.google.co.in/books?id=c6QIAAAAIAAJ&q=%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8+%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%A5&dq=%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8+%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%A5&hl=en&sa=X&ei=WsvEU5f0MMKJuATdy4KQAg&ved=0CD8Q6AEwBTgK संस्कृत साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20140720002020/http://books.google.co.in/books?id=c6QIAAAAIAAJ&q=%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8+%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%A5&dq=%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8+%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%A5&hl=en&sa=X&ei=WsvEU5f0MMKJuATdy4KQAg&ved=0CD8Q6AEwBTgK |date=20 जुलाई 2014 }} गूगल पुस्तक (अभिगमन तिथि १५.०७.२०१४)।</ref>
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कथाओं और किंवदंतियों के अनुसार कालिदास शारीरिक रूप से बहुत सुंदर थे और [[विक्रमादित्य]] के दरबार के [[नवरत्न]]ों में एक थे। कहा जाता है कि प्रारंभिक जीवन में कालिदास अनपढ़ और मूर्ख थे।
 
कालिदास का विवाह [[कालिदास|विद्योत्तमा]] नाम की राजकुमारी से हुआ। ऐसा कहा जाता है कि विद्योत्तमा ने प्रतिज्ञा की थी कि जो कोई उसे [[शास्त्रार्थ]] में हरा देगा, वह उसी के साथ विवाह करेगी। जब विद्योत्तमा ने शास्त्रार्थ में सभी विद्वानों को हरा दिया तो हार को अपमान समझकर कुछ विद्वानों ने बदला लेने के लिए विद्योत्तमा का विवाह महामूर्ख व्यक्ति के साथ कराने का निश्चय किया। चलते चलते उन्हें एक वृक्ष दिखाई दिया जहां पर एक व्यक्ति जिस डाल पर बैठा था, उसी को काट रहा था। उन्होंने सोचा कि इससे बड़ा मूर्ख तो कोई मिलेगा ही नहीं। उन्होंने उसे राजकुमारी से विवाह का प्रलोभन देकर नीचे उतारा और कहा- "मौन धारण कर लो और जो हम कहेंगे बस वही करना"। उन लोगों ने स्वांग भेष बना कर विद्योत्तमा के सामने प्रस्तुत किया कि हमारे गुरु आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आए है, परंतु अभी मौनव्रती हैं, इसलिए ये हाथों के संकेत से उत्तर देंगे। इनके संकेतों को समझ कर हम वाणी में आपको उसका उत्तर देंगे। शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ। विद्योत्तमा मौन शब्दावली में गूढ़ प्रश्न पूछती थी, जिसे कालिदास अपनी बुद्धि से मौन संकेतों से ही जवाब दे देते थे। प्रथम प्रश्न के रूप में विद्योत्तमा ने संकेत से एक उंगली दिखाई कि एकब्रह्म व्यक्तीएक है। परन्तु कालिदास ने समझा कि ये राजकुमारी मेरी एक आंख फोड़ना चाहती है। क्रोध में उन्होंने दो अंगुलियों का संकेत इस भाव से किया कि तू मेरी एक आंख फोड़ेगी तो मैं तेरी दोनों आंखें फोड़ दूंगा। लेकिन कपटियों ने उनके संकेत को कुछ इस तरह समझाया कि आप कह रही हैं कि ब्रह्म एक व्यक्ती है, लेकिन हमारे गुरु कहना चाह रहे हैं कि एक औरउस एक ग्यारहब्रह्म होतेको हैसिद्ध अर्थातकरने कहनेके कालिए तात्पर्यदूसरे है(जगत्) किकी अकेलासहायता व्यक्तीलेनी कुछहोती नहींहै। करअकेला सकताब्रह्म है पर एक और एक मील जाये तो असंभवस्वयं को भी सम्भव कर सकते है जो अकेला व्यक्तीसिद्ध नहीं कर सकता। राज कुमारी ने दूसरे प्रश्न के रूप में खुला हाथ दिखाया कि तत्व पांच है। तो कालिदास को लगा कि यह थप्पड़ मारने की धमकी दे रही है। उसके जवाब में कालिदास ने घूंसा दिखाया कि तू यदि मुझे गाल पर थप्पड़ मारेगी, मैं घूंसा मार कर तेरा चेहरा बिगाड़ दूंगा। कपटियों ने समझाया कि गुरु कहना चाह रहे हैं कि भले ही आप कह रही हो कि पांच तत्व अलग-अलग हैं जैसे पृथ्वी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि। परंतु यह तत्व प्रथक्-प्रथक् रूप में कोई विशिष्ट कार्य संपन्न नहीं कर सकते अपितु आपस में मिलकर एक होकर उत्तम मनुष्य शरीर का रूप ले लेते है जो कि प्रकृतिईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। इस प्रकार प्रश्नोत्तर से अंत में विद्योत्तमा अपनी हार स्वीकार कर लेती है। फिर शर्त के अनुसार कालिदास और विद्योत्तमा का विवाह होता है। विवाह के पश्चात कालिदास विद्योत्तमा को लेकर अपनी कुटिया में आ जाते हैं और प्रथम रात्रि को ही जब दोनों एक साथ होते हैं तो उसी समय ऊंट का स्वर सुनाई देता है। विद्योत्तमा संस्कृत में पूछती है "किमेतत्" परंतु कालिदास संस्कृत जानते नहीं थे, इसीलिए उनके मुंह से निकल गया "ऊट्र"। उस समय विद्योत्तमा को पता चल जाता है कि कालिदास अनपढ़ हैं। उसने कालिदास को धिक्कारा और यह कह कर घर से निकाल दिया कि सच्चे विद्वान् बने बिना घर वापिस नहीं आना। कालिदास ने सच्चे मन से संस्कृत[[काली]] देवी की शिक्षा प्राप्तआराधना की और उनके आशीर्वाद से वे ज्ञानी और धनवान बन गए। ज्ञान प्राप्ति के बाद जब वे घर लौटे तो उन्होंने दरवाजा खटखटा कर कहा - ''कपाटम् उद्घाट्य सुन्दरि!'' (दरवाजा खोलो, सुन्दरी)। विद्योत्तमा ने चकित होकर कहा -- ''अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः'' (कोई विद्वान लगता है)।
 
इस प्रकार, इस किम्वदन्ती के अनुसार, कालिदास ने विद्योत्तमा को अपना पथप्रदर्शक गुरु माना और उसके इस वाक्य को उन्होंने अपने काव्यों में भी जगह दी। [[कुमारसंभवम्]] का प्रारंभ होता है- ''अस्त्युत्तरस्याम् दिशि…'' से, [[मेघदूतम्]] का पहला शब्द है- ''कश्चित्कांता…'' और [[रघुवंशम्]] की शुरुआत होती है- ''वागार्थविव…'' से।
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== सन्दर्भ ==
के डी सेठना, प्रॉबलम्स ऑफ एन्शिएंट इंडिया (अध्याय-द टाइम्स ऑफ कालिदास), २००० नई दिल्ली, आदित्य प्रकाशन
कालिदास वस्तुतः भारतीय साहित्य के नक्षत्र।
कालिदास वस्तुतः भारतीय साहित्य के नक्षत्र कालिदास की आलोचना जिस प्रकार विद्वानों ने विधोतमा का विवाह एक महामूर्ख से करा दिया यह तथ्य हीन है क्योंकि राज कन्या का विवाह एक मूर्ख से कराने से पूर्व राजदंड का भय या इस विषय पर चर्चा उपरोक्त कथा में नहीं दिखाई पड़ता है भ्रम वश यदि छूट भी गया हो तो तो कोई राजकन्या एकाएक परास्त होकर बिना कुल गोत्र धन-संपत्ति या पूर्णतया उसका जानकारी लिए बिना विवाह नहीं कर सकती यदि शर्त बस कर लिया हो तो कथा है विद्योतमा से तिरस्कृत होकर भगवती के मंदिर में जिह्वा कट जाने के कारण यदि वे विद्योत्तमा के प्रयास में विद्या विद्या कह कर विलाप कर रहे थे भगवती ने उन्हें विद्या का भंडार बना दिया परंतु भी हर स्थान पर भगवान शिव का ही आराधना किए वे कहीं भगवती का आराधना नहीं कर सके अतः इस स्थान पर यह कथा तथ्य हीन प्रमाणित होता है विद्या का भंडार होकर वापस आए तब उन्होंने पत्नी से कहा अनावृतं कपाटं द्वारं देहि प्रश्न को सुनकर पत्नी ने प्रत्युत्तर में कहा अस्ति कश्चिद् वाग् विशेष: अस्ति से कुमारसंभव कश्चिद् से मेघदूत वाग् से रघुवंशम् परंतु विश्व प्रसिद्ध अभिज्ञानशाकुन्तलम् ग्रंथ को विशेष शब्द से शुरुआत क्यों नहीं किया गया विशेष शब्द प्रश्नवाचक शब्दों में से छूट गया है फिर भी यह एक संयोग नहीं यह एक तथ्याभाव में उपरोक्त कथा को ग्राह्य किया गया है
 
== इन्हें भी देखें ==