"योगाचार": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Rescuing 5 sources and tagging 0 as dead.) #IABot (v2.0.1 |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1:
{{आधार}}
'''योगाचार''' [[बौद्ध दर्शन]] एवं [[मनोविज्ञान]] का एक प्रमुख शाखा है। यह भारतीय महायान की उपशाखा
योगाचार्य इस बात की व्याख्या करता है कि हमारा मन किस प्रकार हमारे अनुभवों की रचना करता है। योगाचार दर्शन के अनुसार मन से बाहर संवेदना का कोई स्रोत नहीं है।
इस सम्प्रदाय मत के अनुसार चित्त (मन) या विज्ञान के अतिरिक्त संसार के किसी भी वस्तु का अस्तित्व नहीं है। समस्त ब्राह्य पदार्थ, जिन्हें हम देखते हैं वे विज्ञान मात्र हैं। योगाचार द्वारा आलय विज्ञान को वश में करके विषय ज्ञान की उत्पत्ति को रोका जा सकता है, ऐसा हो जाने पर व्यक्ति [[निर्वाण]] को प्राप्त करता है।
इस संप्रदाय का मत हे कि पदार्थ (बाह्य) जो दिखाई पड़ते हैं, वे शून्य हैं । वे केवल अन्दर ज्ञान में भासते हैं, बाहर कुछ नहीं हैं । जैसे, 'घट' का ज्ञान भीतर आत्मा में है, तभी बाहर भासता है, और लोग कहते हैं कि यह घट है । यदि यह ज्ञान अंदर न हो तो बाहर किसी वस्तु का बोध न हो। अतः सब पदार्थ अन्दर ज्ञान में भासते हैं और बाह्य शून्य है। इनका यह भी मत है कि जो कुछ है, वह सब दुःख स्वरूप है, क्योंकि प्राप्ति में संतोष नहीं होता, इच्छा बनी रहती है ।
==सन्दर्भ==
|