"अप्सरा": अवतरणों में अंतर

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हिंदू कथाओं में '''अप्सरा''' देवलोक की नृत्यांगनायें हैं। इनमें से प्रमुख हैं [[उर्वशी]], [[रंभा|रम्भा]], [[मेनका]] आदि।
 
==<span lang="Hi" dir="ltr">परिचय</spईस्लाम की तरह हिन्दु धर्म में नारी के प्रति गंदी नजर नही दर्शायी गई है ईस्लाम में हूरें काम पुर्ति के लिये बताई गई है लेकिन सनातन धर्म में अप्सरायें माता तुल्य है
==<span lang="Hi" dir="ltr">परिचय</span>==
प्रत्येक [[धर्म]] का यह विश्वास है कि स्वर्ग में पुण्यवान् लोगों को दिव्य सुख, समृद्धि तथा भोगविलास प्राप्त होते हैं और इनके साधन में अन्यतम है अप्सरा जो काल्पनिक, परंतु नितांत रूपवती स्त्री के रूप में चित्रित की गई हैं। यूनानी ग्रंथों में अप्सराओं को सामान्यत: 'निफ' नाम दिय गया है। ये तरुण, सुंदर, अविवाहित, कमर तक वस्त्र से आच्छादित और हाथ में पानी से भरे हुआ पात्र लिए स्त्री के रूप में चित्रित की गई हैं जिनका नग्नस्थान रूप देखनेवाले को पागल बना डालतादेवीतुल्य है और इसलिए नितांत अनिष्टकारक माना जाता है। जल तथा स्थल पर निवास के कारण इनके दो वर्ग होते हैं।
 
[[भारत]]वर्ष में अप्सरा और [[गन्धर्व|गंधर्व]] का सहचर्य नितांत घनिष्ठ है। अपनी व्युत्पति के अनुसार ही अप्सरा (''अप्सु सरत्ति गच्छतीति अप्सरा'') जल में रहनेवाली मानी जाती है। [[अथर्ववेद संहिता|अथर्व]] तथा [[यजुर्वेद]] के अनुसार ये पानी में रहती हैं इसलिए कहीं-कहीं मनुष्यों को छोड़कर नदियों और जल-तटों पर जाने के लिए उनसे कहा गया है। यह इनके बुरे प्रभाव की ओर संकेत है। [[शतपथ ब्राह्मण]] में (११/५/१/४) ये तालाबों में पक्षियों के रूप में तैरनेवाली चित्रित की गई हैं और पिछले साहित्य में ये निश्चित रूप से जंगली जलाशयों में, नदियों में, समुद्र के भीतर वरुण के महलों में भी रहनेवाली मानी गई हैं। जल के अतिरिक्त इनका संबंध वृक्षों से भी हैैं। अथर्ववेद (४। ३७। ४) के अनुसार ये [[अश्वत्थ]] तथा [[न्यग्रोध]] वृक्षों पर रहती हैं जहाँ ये [[झूला|झूले]] में झूला करती हैं और इनके मधुर वाद्यों ([[कर्करी]]) की मीठी ध्वनि सुनी जाती है। ये नाच-गान तथा खेलकूद में निरत होकर अपना मनोविनोद करती हैं। ऋग्वेद में उर्वशी प्रसिद्ध अप्सरा मानी गई है (१०/९५)।