"ओड़िया साहित्य": अवतरणों में अंतर
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'''उपेंद्रभंज''' (1685-1725) - ये रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनके कारण ही रीतियुग को भंजयुग भी कहा जाता है। शब्दवैलक्षण्य, चित्रकाव्य एवं छंद, अलंकार आदि के ये पूर्ण ज्ञाता थे। इनकी अनेक प्रतिभाप्रगल्भ कृतियों ने उड़िया साहित्य में इनकों सर्वश्रेष्ठ पद पर प्रतिष्ठित किया है। "वैदेहीशविलास", "कलाकउतुक", "सुभद्रापरिणय", "ब्रजलीला", "कुंजलीला", आदि पौराणिक काव्यों के अतिरिक्त लावण्यवती, कोटि-ब्रह्मांड-सुंदरी, रसिकहारावली आदि अनेक काल्पनिक काव्यग्रंथ भी हैं। इन काव्यों में रीतिकाल के समस्त लक्षणों का संपूर्ण विकास हुआ है। कहीं कहीं सीमा का अतिक्रमण कर देने के कारण अश्लीलता भी आ गई है। इनका "बंधोदय" चित्रकाव्य का अच्छा उदाहरण है। "गीताभिधान" नाम से इनका एक कोशग्रंथ भी मिलता है जिसमें कांत, खांत आदि अंत्य अक्षरों का नियम पालित है। "छंदभूषण" तथा "षड्ऋतु" आदि अनेक कृतियाँ और भी पाई जाती हैं।
भंजकालीन साहित्य के बाद उड़िया साहित्य में चैतन्य प्रभावित गौड़ीय वैष्णव धर्म और रीतिकालीन लक्षण, दोनों का समन्वय देखने में आता है। इस काल के काव्य प्राय: राधाकृष्ण-प्रेम-परक हैं
इस क्रम में प्रधानतया और दो व्यक्ति पाए जाते हैं : (1) ब्रजनाथ बडजेना और (2) भीमभोई। ब्रजनाथ बडजेना ने "गुंडिचाविजे" नामक एक खोरता (हिंदी) काव्य भी लिखा था। उनके दो महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं : "समरतंरग" और "चतुरविनोद"। भीमभोई जन्मांध थे और जाति के कंध (आदिवासी) थे। वे निरक्षर थे, लेकिन उनके रचित "स्तुतिचिंतामणि", "ब्रह्मनिरूपण गीता" और अनके भजन पाए जाते हैं। उड़िया में वे अत्यंत प्रख्यात हैं।
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