"विट्ठल रामजी शिंदे": अवतरणों में अंतर

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1873 – 2 जनवरी, 1944) [[महाराष्ट्र]] के सबसे बड़े समाजसुधारकों में से थे। उनका सबसे बड़ा योगदान [[अस्पृश्यता]] को मिटाना तथा दलित वर्ग को बराबरी पर लाना था।
 
विट्ठल रामजी शिंदे का जन्म 23 अप्रैल23अप्रैल सन 1873 को1873को जामखंडी ([[कर्नाटक]]) में हुआ था। उनके पिता रामजीपितारामजी शिन्दे, जामखंडी स्टेट में नौकरी किया करते थे.थे। विट्ठल रामजी का ब्याह 9 वर्ष9वर्ष की उम्र में हुआ था.था। तब उनकी पत्नी की उम्र मुश्किल से 11वर्ष रही वर्ष रहीहोगी। होगी.
 
मेट्रिक उतीर्ण करने के बाद विट्ठल रामजी शिंदे ने [[पूना]] आकर फर्ग्युशन कालेज से बी.बी। ए.ए। और सन 18981898में एल। मेंएल। एल.एल.बी किया.किया। इस दौरान उन्हें पूना के प्रसिद्ध वकीलप्रसिद्धवकील [[गंगाराम भाऊ म्हस्के]] और बडौदा के महाराजा [[सयाजीराव गायकवाड़]] से आर्थिक सहायता मिली थी.थी।
 
शुरू में विट्ठल रामजी शिंदे [[प्रार्थना समाज]] के सम्पर्क में आये थे.थे। प्रार्थना समाज द्वारा प्राप्त आर्थिक सहायता से वे उच्च अध्ययन हेतु [[इंग्लैण्ड]], इस शर्त के साथ कि वापस आकर वे संस्था का काम करेंगे.करेंगे। इंग्लैण्ड स्थित [[आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय]] के मानचेस्टर कालेज में शिंदे ने विभिन्न धर्मों, खास कर [[बौद्ध धर्म]] और [[पालि भाषा]] का गहन अध्ययन किया।
 
सन 1903 में इंग्लैण्ड1903मेंइंग्लैण्ड से लौटने के बाद [[मुम्बई]] में उन्होंने 'यंग थीस्ट यूनियनयंगथीस्टयूनियन' ( Young Theist Union) नामक संस्था स्थापित की.की। संस्था के सदस्यों के लिए उन्होंने शर्तें रखी थी कि वे [[मूर्तिपूजा]] और जाति-पांति की घृणा में विश्वास कभी नहीं करेंगे.करेंगे। वे सन 1913 तकसन1913तक प्रार्थना समाज में रहे.रहे। यद्यपि, बाद के दिनों में उनके कार्यों का उन्हीं के लोग विरोध करने लगे थे.थे।
 
विट्ठल रामजी शिंदे ने वर्ष 1905 में पूना के मिठनगंज पेठ में अछूतों के लिए रात्रि-स्कूल खोला.खोला। इसी प्रकारप्रकार14मार्च 14 मार्च 1907 को1907को अछूत जातियों के सामाजिक-धार्मिक सुधार के निमित्त 'सोमवंशीय मित्र समाज' की स्थापना की.की।
 
प्रार्थना समाज कीसमाजकी ओर से 18 अक्टूबरा 1906 18अक्टूबरा को1906को 'डिप्रेस्ड क्लासेस मिशन' की स्थापना की गयी थी.थी। विट्ठल रामजी शिंदे इसके महासचिव थे.थे। सन 1912 तक1912तक डिप्रेस्ड क्लासेस मिशन के पास विभिन्न 4 राज्योंविभिन्न4राज्यों में करीब 23 स्कूल और 5 23स्कूलऔर छात्रावास5छात्रावास थे.थे। विट्ठल रामजी शिंदे ने कई रचनात्मक कार्य किये.किये। मुम्बई और [[सेन्ट्रल प्रोविन्स]] बरार में उन्होंने अस्पृश्यों के लिए कई आश्रम, स्कूल और पुस्तकालय खोले.खोले। सन 1917 को1917को उन्होंने अखिल भारतीय निराश्रित अस्पृश्यता निवारक संघसंघकी स्थापना कीकी। स्थापना की.
 
बाद के दिनों में विट्ठल रामजी शिंदे ने पूना को अपना कार्य क्षेत्र बनाया.बनाया। यहाँ परयहाँपर स्थानीय प्रशासन द्वारा उन्हें 7 एकड़उन्हें7एकड़ जमीन दी गयी थी जो कभी [[ज्योतिबा फुले]] और उनके 'सत्य-शोधक समाज' को दी गयी थी।
 
अस्पृश्यता जैसे सामाजिक सुधार के आधारभूत प्रश्न उठाने से विट्ठल रामजी शिंदे के उनके अपने ही लोगों से मतभेद बढ़ते जा रहे थे. थे। मतभेद बढ़ते गए और अंतत: सन 1910 में1910में उन्होंने प्रार्थना समाज को पूरी तरह छोड़ दिया.दिया।
 
सन 1917 में1917में मान्तेगु-चेम्स फोर्ड के चुनाव सुधार की घोषणा के साथ ही देश की राजनैतिक परिस्थितियां तेजी से बदल रही थी.थी। सीटों के रिजर्वेशन के कारण पिछड़ी जातियों का ध्रुवीकरण हो रहा था.था। स्थिति को भांपते हुए विट्ठल रामजी शिंदे नेशिंदेने 'मराठा राष्ट्रीय संघ' की स्थापना की और नवम्बर 1917 में1917में एक विशाल अधिवेशन कर सन 1916 के1916के [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के 'लखनऊ पेक्ट' को भारी समर्थन दिया.दिया।
 
[[अस्पृश्यता]] के प्रश्न को अखिल भारतीय स्तर पर उठाने के लिए विट्ठल रामजी शिंदे लगातारशिंदेलगातार प्रयास कर रहे थे.थे। उन दिनों जहाँ कांग्रेस की सभा होती थी, शिंदे वहीँ 'डिप्रेस्ड क्लास मिशन' का अधिवेशन आयोजित करते थे.थे। अंततः शिंदे के प्रयासों से सन 1917 में1917में कलकत्ता के अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार अस्पृश्यता के विरुद्ध प्रस्ताव रखा था.था। वह भी शायद, इसलिए संभव हो पाया था। उस अधिवेशन की अध्यक्षता [[एनी बेसेन्ट]] कर रहीं थीं.थीं।
 
23 मार्च23मार्च सन 1918 विट्ठल रामजी शिंदे ने कोनेको मुम्बई में बडौदा के महाराजा [[सयाजी राव गायकवाड़]] की अध्यक्षता में एक अधिवेशन आयोजित किया.किया।
 
विट्ठल रामजी शिंदे पृथक चुनाव प्रणाली के विरुद्ध थे.थे। वे उसे देश के लिए विभाजनकारी मानते थे.थे। पूना में मराठोंमेंमराठों के लिए आरक्षित सीट से उन्होंने लड़ने से मना कर दिया था.था। शुरू में [[कोल्हापुर]] के [[साहू महाराज]], शिंदे के साथ थे किन्तु ब्राह्मणों से तंग आ कर जब उन्होंने क्षत्रियों के धार्मिक संस्कार किये जाने के लिए क्षत्रियलिएक्षत्रिय जगतगुरु के नियुक्त किये जाने का आदेश निकाला तो शिंदे द्वारा उसकी आलोचना किये जाने से वे उनसेवेउनसे नाराज हो गए थे.थे।
 
शिंदे से उनके अपने 'डिप्रेस्ड क्लासेस मिशन' के लोग भी नाराज थे.थे। बाध्य हो कर पूना में संस्था कासंस्थाका नेतृत्व शिंदे को ऐसे ही एक नाराज साथी को सौपना पड़ा.पड़ा।
 
रचनात्मक कार्यों के साथ शिंदे लेखन विधा से भी अपने विचारों का आदान-प्रदान करते थे.थे। 'उपासना' और 'सुबोध चन्द्रिका' जैसी मासिक/साप्ताहिक पत्रिकाओं में सामाजिक सुधार के मुद्दों पर उनके लेख प्रकाशित होते रहते थे.थे। सन 1933 में1933में उनके द्वारा प्रकाशित 'बहिष्कृत भारत' और 'भातीय अस्पृश्यताचे प्रश्न' अस्पृश्यता के प्रश्न पर ही केन्द्रित पत्रिकाओं के अंक थे.थे। हालैण्ड के विश्व धर्म सम्मेलन में उनका पढ़ा गया एक लेख ' हिन्दुस्तानातिल उदार धर्म' (हिन्दुस्तान का उदार धर्म) काफी प्रसिद्ध हुआ था.था। शिंदे ने 'आठवणी आणि अनुभव ' नाम से अपनी [[आत्मकथा]]लिखी थी। लिखी थी.
 
[[सती प्रथा]] के उन्मूलन के लिए विट्ठल रामजी शिंदे ने जबरदस्त काम किया था.था। इसके विरुद्ध जनचेतना जगाने के लिए महाराष्ट्र में एक सर्व धर्मी संस्था बनायी गयी थी , जिसके शिंदे सचिव थे.थे।
 
सन 1924 के1924के दौर में शिंदे ने [[केरल]] के [[वैकम मन्दिर प्रवेश आन्दोलन]] में भाग लिया था.था। परन्तु उनका यह कार्य उनके '[[ब्राह्म समाज]]' के लोगों को पसंद नहीं आया.आया। निराश हो कर शिंदे पूना लौट आये.आये। शिंदे का ध्यान अब [[बौद्ध धर्म]] की तरफ गया.गया। उन्होंने '[[धम्मपद]]' आदि ग्रंथों का गहन अध्ययन किया.किया। इसी अध्ययन के सिलसिले में सन 1927 में उन्होंने [[बर्मा]] की यात्रा की थी.थी।
 
विट्ठल शिंदे का अन्तिम समय निराशापूर्ण था। समाज सुधार के प्रति उनके मन में जो पीड़ा थी और जिसके लिए वे ता-उम्र अपने लोगों से संघर्ष करते रहे थे, को न तो दलित जातियों का समर्थन मिला और न ही उनके अपने लोगों का. का। इसी संत्रास में वे 2 जनवरी 1944 को उनका निधन हो गया।
 
==सन्दर्भ==