"जोनबील मेला": अवतरणों में अंतर

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'''जोनबील''' असमिया के दो शब्दों जोन' और 'बील'से मिलकर बना हैं, जिनका अर्थ क्रमशः चंद्रमा और आर्द्र भूमि होता है। क्योंकि यह एक बड़े प्राकृतिक जल निकाय के आकार का एक अर्धचन्द्र की तरह है। यह एक तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव मेला है। इसकी शुरुआत माह के तीसरे सप्ताह वृहस्पतिवार से शनिवार तक होती है। यह असम के मोरिगांव जिले के जागिरोड से ५ कि.मी. और गुवाहाटी से ३२ कि.मी. दूर है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग NH-37 से जुड़ा हुआ है।
==इतिहास==
मान्यता है कि जोनबिलजोनबील मेला की शुरुआत १५ वीं शताब्दी में हुई थी। लेकिन इस मेले को व्यवस्थित करने में अहम भूमिका अहोम वंश के राजाओं ने दिया। उन्होंने इस मेले को राजनीतिक परिस्थितियों पर चर्चा करने के लिए आयोजित किया था।
==वस्तु विनिमय प्रणाली==
[[File:Jonbeel Fair 12.jpg|thumb|वस्तु विनिमय प्रणाली]]
जोनबिलजोनबील मेला एक खाध विनिमय मेला है। मानव जाति की भलाई के लिए सर्वप्रथम यहां अग्नि पूजा की जाती है। इस अवसर पर एक विशाल बाजार आयोजित किया जाती है। हर वर्ष मेला शुरू होने से पूर्व भारत के पूर्वोत्तर पर्वतीय इलाकों में रहने वाले जनजातियों करवी,खांसी,तिवर,जयंतियां अपने मनमोहक हस्त निर्मित उत्पादन के साथ मेले में आते हैं। यह देश का एकमात्र मेला है, जहां कुछ खरीदने के लिए पैसे की जरूरत नहीं पड़ती है। जिस तरह प्राचीन काल में वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी। जहां आज भी बार्टर प्रणाली मौजूद है। पहाड़ी इलाकों पर होने वाली फसलें फल, आलू, हल्दी, मिर्च आदि लाते हैं। और मैदानी भागों से चावल, तेल, मछली आदि अनुपजाऊ फसलों को अपने साथ ले जाते है। अतः यह भारत का एकमात्र मेला है, जहां आज भी वस्तु प्रणाली जीवित है।
[[File:A Tiwa Women Preparing food.jpg|thumb|मेला में खाना बनाती हुई एक तिवान औरत]]
==महत्त्व==