"सनातन धर्म": अवतरणों में अंतर

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== स्वरूप ==
सनातन में आधुनिक और समसामयिक चुनौतियों का सामना करने के लिए इसमें समय समय पर बदलाव होते रहे हैं, जैसे कि [[राजा राम मोहन राय]], [[स्वामी दयानंद]], [[स्वामी विवेकानंद]] आदि ने [[सती प्रथा]], [[बाल विवाह]], अस्पृश्यता जैसे असुविधाजनक परंपरागत कुरीतियों से असहज महसूस करते रहे। इन कुरीतियों की जड़ो (धर्मशास्त्रो) में मौजूद उन श्लोको -मंत्रो को "क्षेपक" कहा या फिर इनके अर्थो को बदला और इन्हें त्याज्य घोषित किया तो कई पुरानी परम्पराओं का पुनरुद्धार किया जैसे विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा आदि। यद्यपि आज सनातन का पर्याय [[हिन्दू]] है पर [[सिख]], [[बौद्ध]], [[जैन]] धर्मावलम्बी भी अपनेको आपसनातन कोधर्म सनातनीका कहतेहिस्सा हैं, क्योंकि बुद्ध भी अपने को सनातनी कहते हैं।<ref>"एस धम्मो सनन्तनो" (धम्मपद, गाथा -5)</ref>यहाँ तक कि नास्तिक जोकि चार्वाक दर्शन को मानते हैं वह भी सनातनी हैं। सनातन धर्मी के लिए किसी विशिष्ट पद्धति, कर्मकांड, वेशभूषा को मानना जरुरी नहीं। बस वह सनातनधर्मी परिवार में जन्मा हो, वेदांत, मीमांसा, चार्वाक, जैन, बौद्ध, आदि किसी भी दर्शन को मानता हो बस उसके सनातनी होने के लिए पर्याप्त है।<ref>J. Zavos, ''Defending Hindu Tradition: Sanatana Dharma as a Symbol of Orthodoxy in Colonial India'', Religion (Academic Press), Volume 31, Number 2, April 2001, pp. 109-123; see also R. D. Baird, "Swami Bhaktivedant a and the Encounter with Religions", ''Modern Indian Responses to Religious Pluralism'', edited by Harold Coward, State University of New York Press, 1987)</ref>
 
सनातन धर्म की गुत्थियों को देखते हुए कई बार इसे कठिन और समझने में मुश्किल [[धर्म]] समझा जाता है। हालांकि, सच्चाई तो ऐसी नहीं है, फिर भी इसके इतने आयाम, इतने पहलू हैं कि लोगबाग कई बार इसे लेकर भ्रमित हो जाते हैं। सबसे बड़ा कारण इसका यह कि सनातन धर्म किसी एक दार्शनिक, मनीषा या ऋषि के विचारों की उपज नहीं है, न ही यह किसी ख़ास समय पैदा हुआ। यह तो अनादि काल से प्रवाहमान और विकासमान रहा। साथ ही यह केवल एक दृष्टा, सिद्धांत या तर्क को भी वरीयता नहीं देता।