"नंद वंश": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Nanda Empire.gif|right|300px|thumb|३२३ ईसा पूर्व में धनानन्द के शासनकाल में नन्दवंश का साम्राज्य अपनी चरम अवस्था में था]]
नंद वंश मगध, बिहार का लगभग 344 ई.पू. से 322 ई.पू. के बीच का शासक वंश था, जिसका आरंभ महापद्मनंद से हुआ था।
'''नंदवंश''' प्राचीन [[भारत]] का एक राजवंश था।पुराणों में इसे महापद्मनंद कहा गया है ।
 
नंद शासक मौर्य वंश के पूर्ववर्ती राजा थे। मौर्य वंश से पहले के वंशों के विषय में जानकारी उपलब्ध नहीं है और जो है वो तथ्य और किंवदंतियों का मिश्रण है।
उसे महापद्म एकारात पूराण मे काहागया है, सर्व क्षत्रान्तक आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है । जिसने पाँचवीं-चौथी शताब्दी ईसा पूर्व उत्तरी भारत के विशाल भाग पर शासन किया। नंदवंश की स्थापना महापद्मनंद ने की थी। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जो कुलीन नहीं था तथा जिसकी सीमाएं गंगा के मैदानों को लांघ गई। यह साम्राज्य वस्तुतः स्वतंत्र राज्यों या सामंतों का शिथिल संघ ना होकर बल्कि किसी शक्तिशाली राजा बल के सम्मुख नतमस्तक होते थे। ये एक ''एक-रात'' की छत्रछाया में एक अखंड राजतंत्र था, जिसके पास अपार सैन्यबल, धनबल और जनबल था। [[महापद्मनंद|चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद]] ने निकटवर्ती सभी राजवंशो को जीतकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की एवं केंद्रीय शासन की व्यवस्था लागू की। इसीलिए सम्राट महापदम नंद को "केंद्रीय शासन पद्धति का जनक" कहा जाता है। महापद्म नन्द के प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त, धनानन्द , । इसके शासन काल में भारत पर आक्रमण सिकन्दर द्वारा किया गया । सिकन्दर के भारत से जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशान्ति और अव्यवस्था फैली । धनानन्द एक लालची और धन संग्रही शासक था, जिसे असीम शक्तिल और सम्पत्ति के बावजूद वह जनता के विश्वाास को नहीं जीत सका । उसने एक महान विद्वान ब्राह्मण चाणक्य को अपमानित किया था । चाणक्य ने अपनी कूटनीति से धनानन्द को पराजित कर चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाया । <ref>{{Cite book |url=http://books.google.co.in/books?id=jlKPr1MCNWkC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false |title=नंद मौर्य युगीन भारत |last=शास्त्री |first=के ए नीलकंठ |date= |website= |language= |archive-url=https://web.archive.org/web/20121202112154/http://books.google.co.in/books?id=jlKPr1MCNWkC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false |archive-date=2 दिसंबर 2012 |dead-url= |access-date= |url-status=live }}</ref> यह स्मरण योग्य बात है कि नंदवंश के राजा अपने उत्तराधिकारियों और भावी पीढ़ियों को दान में क्या दे गए? स्मिथ के शब्दों में कहें तो "उन्होंने 66 परस्पर विरोधी राज्यों को इस बात के लिए विवश किया कि वह आपसी उखाड़-पछाड़ न करें और स्वयं को किसी उच्चतर नियामक सत्ता के हाथों सौंप दे।"<ref name="स्मिथ">{{Cite book|title= द अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया |last= स्मिथ |first= वीए |date=|website=|language=|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref>
स्थानीय और जैन परम्परावादियों से पता चलता है कि इस वंश के संस्थापक महापद्म, जिन्हें महापद्मपति या उग्रसेन भी कहा जाता है, समाज के निम्न वर्ग के थे।
यूनानी लेखकों ने भी इस की पुष्टि की है।
महापद्म ने अपने पूर्ववर्ती शिशुनाग राजाओं से मगध की बाग़डोर और सुव्यवस्थित विस्तार की नीति भी जानी। उनके साहस पूर्ण प्रारम्भिक कार्य ने उन्हें निर्मम विजयों के माध्यम से साम्राज्य को संगठित करने की शक्ति दी।
पुराणों में उन्हें सभी क्षत्रियों का संहारक बतलाया गया है। उन्होंने उत्तरी, पूर्वी और मध्य भारत स्थित इक्ष्वाकु, पांचाल, काशी, हैहय, कलिंग, अश्मक, कौरव, मैथिल, शूरसेन और वितिहोत्र जैसे शासकों को हराया। इसका उल्लेख स्वतंत्र अभिलेखों में भी प्राप्त होता है, जो नन्द वंश के द्वारा गोदावरी घाटी- आंध्र प्रदेश, कलिंग- उड़ीसा तथा कर्नाटक के कुछ भाग पर कब्ज़ा करने की ओर संकेत करते हैं।
महापद्म के बाद पुराणों में नंद वंश का उल्लेख नाममात्र का है, जिसमें सिर्फ सुकल्प (सहल्प, सुमाल्य) का ज़िक्र है, जबकि बौद्ध महाबोधिवंश में आठ नामों का उल्लेख है। इस सूची में अंतिम शासक धनानंद का उल्लेख संभवत: अग्रामी या जेन्ड्रामी के रूप में है और इन्हें यूनानी स्त्रोतों में सिकंदर महान का शक्तिशाली समकालीन बताया गया है।
इस वंश के शासकों की राज्य-सीमा व्यास नदी तक फैली थी। उनकी सैनिक शक्ति के भय से ही सिकंदर के सैनिकों ने व्यास नदी से आगे बढ़ना अस्वीकार कर दिया था।
कौटिल्य की सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ई. पूर्व में नंदवंश को समाप्त करके मौर्य वंश की नींव डाली।
इस वंश में कुल नौ शासक हुए - महापद्मनंद और बारी-बारी से राज्य करने वाले उसके आठ पुत्र।
इन दो पीढ़ियों ने 40 वर्ष तक राज्य किया।
इन शासकों को शूद्र माना जाता है।
नंद वंश का संक्षिप्त शासनकाल मौर्य वंश के लंबे शासन के साथ प्रारंभिक भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण संक्रमण काल को दर्शाता है।
गंगा नदी में (छठी से पांचवी शताब्दी ई.पू.) भौतिक संस्कृति में बदलाव आया, जिसका विशेष लक्षण कृषि में गहनाता और लौह तकनीक का बढता इस्तेमाल था। इससे कृषि उत्पादन में उपयोग से अधिक वृद्धि हुई और वाणिज्यिक और शहरी केंद्रों के विकास को बढ़ावा मिला।
इस परिप्रेक्ष्य में यह बात महत्त्वपूर्ण है कि कई स्थानीय और विदेशी स्त्रोतों में नंद राजाओं को बहुत समृद्ध और विभिन्न प्रकार के करों की वसूली में निर्दयी के रूप में चित्रित किया गया है।
सिकंदर के काल में नंद की सेना में लगभग 20,000 घुड़सवार, 2,00,000 पैदल सैनिक, 2000 रथ और 3000 हाथी। प्रशासन में नंद राज्य द्वारा उठाए गए क़दम कलिंग (उड़ीसा) में सिचाई परियोजनाओं के निर्माण और एक मंत्रिमंडलीय परिषद के गठन से स्पष्ट होते हैं।
 
<ref>{{Cite book |url=http://books.google.co.in/books?id=jlKPr1MCNWkC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false |title=नंद मौर्य युगीन भारत |last=शास्त्री |first=के ए नीलकंठ |date= |website= |language= |archive-url=https://web.archive.org/web/20121202112154/http://books.google.co.in/books?id=jlKPr1MCNWkC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false |archive-date=2 दिसंबर 2012 |dead-url= |access-date= |url-status=live }}</ref> यह स्मरण योग्य बात है कि नंदवंश के राजा अपने उत्तराधिकारियों और भावी पीढ़ियों को दान में क्या दे गए? स्मिथ के शब्दों में कहें तो "उन्होंने 66 परस्पर विरोधी राज्यों को इस बात के लिए विवश किया कि वह आपसी उखाड़-पछाड़ न करें और स्वयं को किसी उच्चतर नियामक सत्ता के हाथों सौंप दे।"<ref name="स्मिथ">{{Cite book|title= द अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया |last= स्मिथ |first= वीए |date=|website=|language=|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref>
 
==ऐतिहासिक स्रोत==