"जॉन बार्थविक गिलक्राइस्ट": अवतरणों में अंतर
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गिलक्राइस्ट का महत्व इस दृष्टि से बहुत अधिक है कि शिक्षा माध्यम के रूप में इन्होंने हिन्दी का महत्व पहचाना। माक्विस बेलेज़ली ने अपने गर्वनर जनरल के कार्यकाल (1798-1805) में अंग्रेज प्रशासकों तथा कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने तथा उन्हें भारतीय भाषाओं से परिचित कराने के लिए कलकत्ता में 4 मई सन् 1800 ई0 को फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। सन् 1800 में कालेज के हिन्दुस्तानी विभाग के अध्यक्ष के रूप में गिलक्राइस्ट को नियुक्त किया गया। आप ईस्ट इंडिया कम्पनी में सहायक सर्जन नियुक्त होकर आए थे। उत्तरी भारत के कई स्थानों में रहकर इन्होंने भारतीय भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। सन् 1800 ई0 में ही गिलक्राइस्ट के सहायक के रूप में लल्लू लाल की नियुक्ति सर्टिफिकेट मुंशी के पद पर हुई। गिलक्राइस्ट ने हिन्दी में पाठ्य पुस्तकें तैयार कराने की दिशा में प्रयास किया। गिलक्राइस्ट ने भारत में बहुप्रयुक्त भाषा रूप को ‘खड़ी बोली' की संज्ञा से अभिहित किया। ‘खड़ी बोली' को अपने भारत की खालिस या खरी बोली माना है। गिलक्राइस्ट ने इसको ‘प्योर स्टर्लिंग' माना तथा अपने कोश में Sterling का अर्थ किया है - Standard, Genuine. इसी भाषा रूप में गिलक्राइस्ट ने लल्लूलाल को लिखने का निर्देश प्रदान किया। लल्लूलाल ने अपने ग्रन्थ ‘प्रेमसागर' की भूमिका में लिखा है ः-
‘‘ श्रीयुत गुनगाहक गुनियन-सुखदायक जान गिलकिरिस्त महाशय की आज्ञा से सम्वत् 1860 (अर्थात् सन् 1803 ई0) में श्री लल्लू जी लाल कवि ब्राह्मन गुजराती सहस्र अवदीच आगरे वाले ने जिसका सार ले, यामिनी भाषा छोड़, दिल्ली आगरे की खड़ी बोली में कह, नाम ‘प्रेमसागर' धरा''।<ref>{{cite web |url=http://rachanakar.blogspot.com/2009/09/blog-post_176.html|title=महावीर सरन जैन का आलेख : विदेशी विद्वानों द्वारा हिन्दी का अध्ययन|accessmonthday=[[१२ सितंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएमएल|publisher=रचनाकार|language=}}</ref><ref>{{cite book |last=जैन |first=प्रो.महावीर सरन |title=विदेशी विद्वानों द्वारा हिन्दी वाड्.मीमांसापरक अध्ययन (
==संदर्भ==
<references/>
[[श्रेणी: हिन्दी के विदेशी विद्वान]]
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