"चन्द्रगुप्त मौर्य": अवतरणों में अंतर

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[[File:Jain Inscription.jpg|thumb|अंतिम श्रुतकेवाली [[भद्रबाहु]] स्वामी और सम्राट चंद्रगुप्त का आगमन दर्शाता शिलालेख (श्रवणबेलगोला)]]
[[श्रवणबेलगोला]] से मिले शिलालेखों के अनुसार, चंद्रगुप्त अपने अंतिम दिनों में पितृ मतानुसार जैन-मुनि हो गए। चन्द्र-गुप्त अंतिम मुकुट-धारी मुनि हुए, उनके बाद और कोई मुकुट-धारी (शासक) [[दिगम्बर|दिगंबर-]][[मुनि]] नहीं हुए | अतः चन्द्र-गुप्त का [[जैन धर्म]] में महत्वपूर्ण स्थान है। स्वामी [[भद्रबाहु]] के साथ श्रवणबेलगोल चले गए। वहीं उन्होंने उपवास द्वारा शरीर त्याग किया। श्रवणबेलगोल में जिस पहाड़ी पर वे रहते थे, उसका नाम [[चंद्रगिरि]] है और वहीं उनका बनवाया हुआ 'चंद्रगुप्तबस्ति' नामक मंदिर भी है।
 
==मगध पर विजय==
 
इसके बाद भारत भर में जासूसों (गुप्तचर) का एक जाल सा बिछा दिया गया जिससे राजा के खिलाफ गद्दारी इत्यादि की गुप्त सूचना एकत्र करने में किया जाता था - यह भारत में शायद अभूतपूर्व था। एक बार ऐसा हो जाने के बाद उसने चन्द्रगुप्त को यूनानी क्षत्रपों को मार भगाने के लिए तैयार किया। इस कार्य में उसे गुप्तचरों के विस्तृत जाल से मदद मिली। मगध के आक्रमण में चाणक्य ने मगध में गृहयुद्ध को उकसाया। उसके गुप्तचरों ने नन्द के अधिकारियों को रिश्वत देकर उन्हे अपने पक्ष में कर लिया। इसके बाद नन्द शासक ने अपना पद छोड़ दिया और चाणक्य को विजयश्री प्राप्त हुई। नन्द को निर्वासित जीवन जीना पड़ा जिसके बाद उसका क्या हुआ ये अज्ञात है। चन्द्रगुप्त मौर्य ने जनता का विश्वास भी जीता और इसके साथ उसको सत्ता का अधिकार भी मिला।
 
==चन्द्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस==