"जन्मपत्री": अवतरणों में अंतर

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आकाश में दो प्रकार के प्रकाश पिंड दिखाई देते हैं। प्रथम वे जो स्थिर दिखाई पड़ते है, [[नक्षत्र]] कहलाते हैं। दूसरे वे जो नक्षत्रों के बीच सदा अपना स्थान परिवर्तित करते रहते हैं, [[ग्रह]] कहलाते हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर प्रति चौबीस घंटों में पश्चिम से पूर्व की ओर घूम जाती है जिससे सभी ग्रह और नक्षत्र पूर्व में उदित होकर पश्चिम में जाते तथा अस्त होते दिखाई पड़ते है। किंतु प्रति दिन ध्यान से देखने पर पता चलता है कि ग्रह नित्य आकाशीय पिंडों की यात्रा के विपरीत, पश्चिम से पूर्व की ओर चला करते हैं। इस प्रकार सूर्य जिस मार्ग से चलकर वर्ष में नक्षत्रचक्र की एक परिक्रमा पूरी करता है, उसे [[सूर्यपथ|क्रांतिवृत्त]] (ecliptic) कहते है। प्राचीन ज्योतिषियों ने इसी क्रांतिवृत्त का बारह भागकर उन्हें [[राशियाँ|राशि]] (sign) की संज्ञा दी है। इनमें कुछ तारापुंजों से जीवधारियों जैसी आकृतियाँ बन जाती हैं। राशियों के नाम उन्हीं जीवों के अनुसार- मेष, वृष, मिथुन, कर्क (केकड़ा), सिंह, कन्या, तुला, (तराजू), बृश्चिक (बिच्छू), धनु (धनुष) मकर (घड़ियाल), कुंभ (घड़ा), मीन (मछली) रखे गए हैं।
 
== '''लग्न औरएवं भाव''' ==
पृथ्वी की दैनिक गति के कारण बारह राशियों का चक्र (zodiac) चौबीस घंटों में हमारे क्षितिज का एक चक्कर लगा आता है। इनमें जो राशि क्षितिज में लगी होती है उसे लग्न कहते हैं। यहाँ लग्न और इसके बाद की राशियाँ तथा सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु आदि ग्रह जन्मपत्री के मूल उपकरण हैं। लग्न से आरंभकर इन बारह राशियाँ को द्वाद्वश भाव कहते हैं। इनमें लग्न शरीरस्थानीय हैं। शेष भाव शरीर से संबंधित वस्तुओं के रूप में गृहीत हैं। जैसे लग्न (शरीर), धन, सहज (बंधु), सुख, संतान, रिपु, जाया, मृत्यु, धर्म, आय (लाभ) और व्यय (खर्च) ये 12 भावों के स्वरूप हैं।