"आपातकाल (भारत)": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
===इंदिरा गांधी का उदय===
1967 और 1971 के बीच, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सरकार और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के साथ ही संसद में भारी बहुमत को अपने नियंत्रण में कर लिया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बजाय, प्रधानमंत्री के सचिवालय के भीतर ही केंद्र सरकार की शक्ति को केंद्रित किया गया। सचिवालय के निर्वाचित सदस्यों को उन्होंने एक खतराखतरे के रूप में देखा। इसके लिए वह अपने प्रधान सचिव [[परमेश्वर नारायण हक्सर|पीएन हक्सर]], जो इंदिरा के सलाहकारों की अंदरुनी घेरे में आते थे, पर भरोसा किया।<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/magazine-44863388|title=कहानी इंदिरा के सबसे ताक़तवर नौकरशाह पीएन हक्सर की|access-date=20 जुलाई 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20180722174128/https://www.bbc.com/hindi/magazine-44863388|archive-date=22 जुलाई 2018|url-status=live}}</ref> इसके अलावा, [[परमेश्वर नारायण हक्सर]] ने सत्तारूढ़ पार्टी की विचारधारा "प्रतिबद्ध नौकरशाही" के विचार को बढ़ावा दिया।
[[चित्र:Sanjay Gandhi cropped.jpg|200px|right|thumb|[[संजय गांधी]] : आपातकाल के दौरान एक लोकप्रिय नारा था,<br> 'आपातकाल के तीन दलाल - संजय, विद्या, बंसीलाल']]
इंदिरा गांधी ने चतुराई से अपने प्रतिद्वंदियों को अलग कर दिया जिस कारण कांग्रेस विभाजित हो गयी और 1969-में दो भागों , कांग्रेस (ओ) ("सिंडीकेट" के रूप में जाना जाता है जिसमें पुराने गार्ड शामिल हैं) व कांग्रेस (आर) जो इंदिरा की ओर थी, भागों में बट गयी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और कांग्रेस सांसदों के एक बड़े भाग ने प्रधानमंत्री का साथ दिया। इंदिरा गांधी की पार्टी पुरानी कांग्रेस से ज्यादा ताकतवर व आंतरिक लोकतंत्र की परंपराओं के साथ एक मजबूत संस्था थी। दूसरी और कांग्रेस (आर) के सदस्यों को जल्दी ही समझ में आ गया कि उनकी प्रगति इंदिरा गांधी और उनके परिवार के लिए अपनी वफादारी दिखने पर पूरी तरह निर्भर करती है और चाटुकारिता का दिखावटी प्रदर्शित करना उनकी दिनचर्या बन गया। आने वाले वर्षों में इंदिरा का प्रभाव इतना बढ़ गया कि वह कांग्रेस विधायक दल द्वारा निर्वाचित सदस्यों की बजाय, राज्यों के मुख्यमंत्रियों के रूप में स्वयं चुने गए वफादारों को स्थापित कर सकती थीं।