"ऊदल": अवतरणों में अंतर

[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो राव (Talk) के संपादनों को हटाकर अभिषेक सिंह चन्देल के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
No edit summary
टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 1:
 
{{pp-protected|small=yes}}'''बनाफर अहीर योद्धा आल्हा ऊदल'''[[File:MAHOBA, U.P. - allha.preview.jpg|thumb|महोबा के वीर अहीर योद्धा ऊदल की प्रतिमा का चित्र]]
'''ऊदल''' [[बुन्देलखण्ड]] (महोबा) के एक वीर राजपूतबनाफर अहीर योद्धा थे जिनकी वीरता की कहानी आज भी उत्तर-भारत के गाँव-गाँव में गायी जाती है।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=LHJZDwAAQBAJ&dq=banaphar+Rajput&source=gbs_navlinks_s|title=Alha Udal ki Veergatha|last=Patang|first=Acharya Mayaram |date=2018|publisher=Prabhat Prakashan.|language=hindi}}</ref> [[जगनिक]] ने अहीर [[आल्ह-खण्ड]] नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है।<ref>{{Cite book |last=मिश्र |first=पं० ललिता प्रसाद|title=आल्हखण्ड |language= |edition=15 |year=[[2007]] |publisher=तेजकुमार बुक डिपो (प्रा०) लि० |location=पोस्ट बॉक्स 85 [[लखनऊ]] 226001 |page=1-11 (महोबे का इतिहास)}}</ref>
 
[[कालिंजर]] तथा [[महोबा]] के चन्द्रवंशी शासक [[परमर्दिदेव]] थे। [[आल्ह-खण्ड]] के रचयिता जगनिक इन्हीं के दरबारी कवि थे। इन्हें राजा [[परमाल]] भी कहा जाता है। आल्हा लोकगाथा के प्रसिद्ध वीर नायक [[आल्हा]] और ऊदल इन्हीं के दरबार के दो वीर सामन्त थे जिन्होंने बहादुरी के साथ बावन लड़ाइयों में भाग लिया था। ऊदल आल्हा का सगा छोटा भाई था परन्तु आल्हा से अधिक बहादुर था। बावन लड़ाइयों में से तेइस का नेतृत्व अकेले ऊदल ने ही किया था। महोबा में ऊदल की प्रतिमा स्थापित है जिसका चित्र यहाँ दिया जा रहा है।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=LHJZDwAAQBAJ&dq=banaphar+Rajput&source=gbs_navlinks_s|title=Alha Udal ki Veergatha|last=Patang|first=Acharya Mayaram |date=2018|publisher=Prabhat Prakashan.|language=hindi}}</ref>
 
पं० ललिता प्रसाद मिश्र ने अपने ग्रन्थ '''आल्हखण्ड''' की भूमिका में आल्हा को [[युधिष्ठिर]] और ऊदल को [[भीम]] का साक्षात [[अवतार]] बताते हुए लिखा है -
''"यह दोनों वीर अवतारी होने के कारण अतुल पराक्रमी थे। ये प्राय: १२वीं विक्रमीय शताब्दी में पैदा हुए और १३वीं शताब्दी के पुर्वार्द्ध तक अमानुषी पराक्रम दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये। वह शताब्दी वीरों की सदी कही जा सकती है और उस समय की अलौकिक वीरगाथाओं को तब से गाते हम लोग चले आते हैं। आज भी कायर तक उन्हें (आल्हा) सुनकर जोश में भर अनेकों साहस के काम कर डालते हैं। [[प्रथम विश्वयुद्ध|यूरोपीय महायुद्ध]] में सैनिकों को रणमत्त करने के लिये ब्रिटिश गवर्नमेण्ट को भी इस (आल्हखण्ड) का सहारा लेना पड़ा था।"''<ref>{{Cite book |last=मिश्र |first=पं० ललिता प्रसाद|title=आल्हखण्ड |language= |edition=15 |year=[[2007]] |publisher=तेजकुमार बुक डिपो (प्रा०) लि० |location=पोस्ट बॉक्स 85 [[लखनऊ]] 226001 |page=1 (भूमिका)}}</ref>
 
[[आल्हा (गायन) | आल्हा]] छन्द में लिखी आल्हखण्ड की ये पंक्तियाँ तो आज भी नौजवानों में जोश भर देती हैं:
 
''"बारह बरस लौ [[कुत्ता|कूकर]] जीवै, अरु सोरह लौ जियै [[सियार]]। बरस अठारह [[क्षत्रिय|क्षत्री]] जीवै, आगे जीवै को धिक्कार॥"धिक्काार''
 
नमन हैं अहीर आल्हा ऊदल जी को।
 
== सन्दर्भ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ऊदल" से प्राप्त