"गुलाम अहमद": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Hadhrat Mirza Ghulam Ahmad2.jpg|right|thumb|120px|गुलाम अहमद]]
[[चित्र:Mirza Ghulam Ahmad with son.jpg|left|thumb|120px|गुलाम अहमद बेटे के साथ]]
[[अहमदिया|अहमदिय्या धार्मिक आंदोलन]] के अनुयायी '''गुलाम अहमद''' (1835-1908) को
अहमदिया समुदाय के लोग स्वयं को मुसलमान मानते व कहते हैं परंतु अहमदिया समुदाय के अतिरिक्त शेष सभी मुस्लिम वर्गो के लोग इन्हें मुसलमान मानने को हरगिज तैयार नहीं। इसका कारण यह है कि जहां अहमदिया समुदाय अल्लाह, कुरान शरीफ ,नमाज़, दाढ़ी, टोपी, बातचीत व लहजे आदि में मुसलमान प्रतीत होते हैं वहीं इस समुदाय के लोग अपनी ऐतिहासिक मान्याताओं, परंपराओं व उन्हें विरासत में मिली शिक्षाओं व जानकारियों के अनुसार हज़रत मोहम्मद को अपना आखरी पैगम्बर स्वीकार नहीं करते। इसके बजाए इस समुदाय के लोग मानते हैं कि नबुअत (पैगम्बरी ) की परंपरा रूकी नहीं है बल्कि सतत जारी है। अहमदिया सम्प्रदाय के लाग अपने वर्तमान सर्वोच्च धर्मगुरु को नबी के रूप में ही मानते हैं। इसी मुख्य बिंदु को लेकर अन्य मुस्लिम समुदायों के लोग समय-समय पर सामूहिक रूप से इस समुदाय का घोर विरोध करते हैं तथा बार-बार इन्हें यह हिदायत देने की कोशिश करते हैं कि अहमदिया समुदाय स्वयं को इस्लाम धर्म से जुड़ा समुदाय
इनको 'कादियानी' भी कहा जाता है। गुरदासपुर के कादियान नामक कस्बे में 23 मार्च 1889 को इस्लाम के बीच एक आंदोलन शुरू हुआ जो आगे चलकर अहमदिया आंदोलन के नाम से जाना गया। यह आंदोलन बहुत ही अनोखा था। इस्लाम धर्म के बीच एक व्यक्ति ने घोषणा की कि "मसीहा" फिर आयेंगे और मिर्जा गुलाम अहमद ने अहमदिया आंदोलन शुरू करने के दो साल बाद 1891 में अपने आप को "मसीहा" घोषित कर दिया। 1974 में अहमदिया संप्रदाय के मानने वाले लोगों को पाकिस्तान में एक संविधान संशोधन के जरिए गैर-मुस्लिम करार दे दिया गया।
[[चित्र:Mirza Ghulam Ahmad group.jpg|right|thumb|310px|मिर्जा गुलाम अहमद (बीच में) तथा कुछ साथी (
== पूर्वज ==
मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद
== दावा ==
1882 में, मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी ने नबी होने का दावा किया।<ref>براھین
==इन्हें भी देखें==
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