"तानसेन": अवतरणों में अंतर
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==शिक्षा दीक्षा ==
ग्वालियर से लगभग 45 कि॰मी॰ दूर ग्राम बेहट में श्री मकरंद पांडे के यहाँ तानसेन का जन्म ग्वालियर के तत्कालीन प्रसिद्ध फ़क़ीर हजरत मुहम्मद गौस के वरदान स्वरूप हुआ था। कहते है कि श्री मकरंद पांडे के कई संताने हुई, लेकिन एक पर एक अकाल ही काल कवलित होती चली गई। इससे निराश और व्यथित श्री मकरंद पांडे सूफी संत मुहम्मद गौस की शरण में गये और उनकी दुआ से सन्
अकबर के नवरत्नों तथा मुग़लकालीन संगीतकारों में तानसेन का नाम परम-प्रसिद्ध है। यद्धपि काव्य-रचना की दृष्टि से तानसेन का योगदान विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता, परन्तु संगीत और काव्य के संयोग की दृष्टि से, जो भक्तिकालीन काव्य की एक बहुत बड़ी विशेषता थी, तानसेन साहित्य के इतिहास में अवश्य उल्लेखनीय हैं। तानसेन अकबर के नवरत्नों में से एक थे। एक बार अकबर ने उनसे कहा कि वो उनके गुरु का संगीत सुनना चाहते हैं। गुरु हरिदास तो अकबर के दरबार में आ नहीं सकते थे। लिहाजा इसी निधि वन में अकबर हरिदास का संगीत सुनने आए। हरिदास ने उन्हें कृष्ण भक्ति के कुछ भजन सुनाए थे। अकबर हरिदास से इतने प्रभावित हुए कि वापस जाकर उन्होंने तानसेन से अकेले में कहा कि आप तो अपने गुरु की तुलना में कहीं आस-पास भी नहीं है। फिर तानसेन ने जवाब दिया कि जहांपनाह हम इस ज़मीन के बादशाह के लिए गाते हैं और हमारे गुरु इस ब्रह्मांड के बादशाह के लिए गाते हैं तो फर्क तो होगा न।
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