"जैविक तंत्रिका तंत्र": अवतरणों में अंतर
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* स्वतंत्र तंत्रिका तंत्र।
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को मस्तिष्क मेरु तंत्रिका तंत्र भी कहते हैं। इसके अंतर्गत अग्र मस्तिष्क, मध्यमस्तिष्क, पश्च मस्तिष्क, अनुमस्तिष्क, पौंस, चेतक, मेरुशीर्ष, मेरु एवं मस्तिष्कीय तंत्रिकाओं के 12 जोड़े तथा मेरु तंत्रिकाओं के 31 जोड़े होते हैं ।
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अग्र मस्तिष्क दो गोलार्धों में विभाजित रहता है तथा इसके भीतर दो गुहाएँ रहती हैं जिन्हें पाश्र्वीय निलय कहते हैं। संवेदी तंत्रिकाएँ शरीर की समस्त संवेदनाओं को मस्तिष्क में पहुँचाकर अनुभूति देती हैं तथा चेष्टावह तंत्रिकाएँ वहाँ से आज्ञा लेकर अंगों से कार्य कराती हैं। केंद्रीय तंत्रिकाएँ विशेष कार्यों के लिए होती हैं। इन सब तंत्रिकाओं के अध: तथा ऊध्र्व केंद्र रहते हैं। जब कुछ क्रियाएँ अध: केंद्र कर देते हैं तथा पश्च ऊध्र्व केंद्रों को ज्ञान प्राप्त होता है, तब ऐसी क्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Reflex action) कहते हैं। ये कियाएँ मेरु से निकलनेवाली तंत्रिकाओं तथा मेरु केंद्रों से होती हैं। मस्तिष्क का भार 40 औंस होता है। मस्तिष्क की घमनियाँ अंत: घमनियाँ होती हैं, अत: इनमें अवरोध होने पर, या इनके फट जाने पर संबंधित भाग को पोषण मिलना बंद हो जाता है, जिसके कारण वह केंद्र कार्य नहीं करता, अत: उस केंद्र से नियंत्रित क्रियाएँ अवरुद्ध हो जाती हैं। इसे ही पक्षाघात (Paralysis) कहते हैं ।
▲[संपादित करें] स्वतंत्र तंत्रिका तंत्र
यह स्वेच्छा से कार्य करता हैं। इसमें एक दूसरे के विरुद्ध कार्य करनेवाली अनुकंपी (sympathetic) तथा सहानुकंपी (parasympathetic), दो प्रकार की तंत्रिकाएँ रहती हैं। शरीर के अनेक कार्य, जैसे रुधिरपरिसंचरण पर नियंत्रण, हृदयगति पर नियंत्रण आदि स्वतंत्र तंत्रिका से होते हैं। अनुकंपी शृंखला करोटि गुहा से श्रोणि गुहा तक कशेरुक दंड के दोनों ओर रहती है तथा इसमें कई गुच्छिकाएँ (ganglions) रहती हैं।
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