"प्राणायाम": अवतरणों में अंतर
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प्राणायाम का [[योग]] में बहुत महत्व है। आदि शंकराचार्य श्वेताश्वतर उपनिषद पर अपने भाष्य में कहते हैं, "प्राणायाम के द्वारा जिस मन का मैल धुल गया है वही मन ब्रह्म में स्थिर होता है। इसलिए शास्त्रों में प्राणायाम के विषय में उल्लेख है।"<ref>{{Cite web|url=https://hindipath.com/swami-vivekananda-sadhana-ke-prathamik-sopan/|title=साधना के प्राथमिक सोपान|last=विवेकानंद|first=स्वामी|date=|website=|archive-url=https://web.archive.org/web/20190819095735/https://hindipath.com/swami-vivekananda-sadhana-ke-prathamik-sopan/|archive-date=19 अगस्त 2019|dead-url=|access-date=|url-status=dead}}</ref> स्वामी विवेकानंद इस विषय में अपना मत व्यक्त करते हैं, "इस प्राणायाम में सिद्ध होने पर हमारे लिए मानो अनंत शक्ति का द्वार खुल जाता है। मान लो, किसी व्यक्ति की समझ में यह प्राण का विषय पूरी तरह आ गया और वह उस पर विजय प्राप्त करने में भी कृतकार्य हो गया , तो फिर संसार में ऐसी कौन-सी शक्ति है, जो उसके अधिकार में न आए? उसकी आज्ञा से चन्द्र-सूर्य अपनी जगह से हिलने लगते हैं, क्षुद्रतम परमाणु से वृहत्तम सूर्य तक सभी उसके वशीभूत हो जाते हैं, क्योंकि उसने प्राण को जीत लिया है। प्रकृति को वशीभूत करने की शक्ति प्राप्त करना ही प्राणायाम की साधना का लक्ष्य है।"<ref name=":0">{{Cite web|url=https://hindipath.com/swami-vivekananda-rajayoga-pran-hindi/|title=राजयोग तृतीय अध्याय – प्राण|last=विवेकानंद|first=स्वामी|date=|website=|archive-url=https://web.archive.org/web/20191022104724/https://hindipath.com/swami-vivekananda-rajayoga-pran-hindi/|archive-date=22 अक्तूबर 2019|dead-url=|access-date=|url-status=live}}</ref>
▲'''सावधानियाँ'''
* सबसे पहले तीन बातों की आवश्यकता है, विश्वास,सत्यभावना, दृढ़ता।
* प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर अन्दर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए।
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*ओम् का जाप का उपचारण करने से हमारे पूरे शरीर मे (सिर से ले कर पैर के अंगूठे तक ) एक वाइब्रेशन होती है जो हमारे अंदर की नगेस्टिव एनर्जी को बाहर निकल के मन और आत्मा को शुद्ध करती है।
== भस्त्रिका प्राणायाम ==
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== कपालभाति प्राणायाम ==
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें और साँस को बाहर फैंकते समय पेट को अन्दर की तरफ धक्का देना है, इसमें सिर्फ साँस को छोड़ते रहना है। दो साँसों के बीच अपने आप साँस अन्दर चली जायेगी, जान-बूझ कर साँस को अन्दर नहीं लेना है। कपाल कहते है मस्तिष्क के अग्र भाग को, भाती कहते है ज्योति को, कान्ति को, तेज को; कपालभाति प्राणायाम लगातार करने से चहरे का लावण्य बढ़ता है। कपालभाति प्राणायाम धरती की सन्जीवनि कहलाता है। कपालभाती प्राणायाम करते समय मूलाधार चक्र पर ध्यान केन्द्रित करना होता है। इससे मूलाधार चक्र जाग्रत हो कर कुन्डलिनी शक्ति जाग्रत होने में मदद होती है। कपालभाति प्राणायाम करते समय ऐसा सोचना है कि, हमारे शरीर के सारे नकारात्मक तत्व शरीर से बाहर जा रहे हैं। खाना मिले ना मिले मगर रोज कम से कम ५ मिनिट कपालभाति प्राणायाम करना ही है, यह दृढ़ संक्लप करना है।
=== लाभ ===
* बालों की सारी समस्याओँ का समाधान प्राप्त होता है।
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