"नंददुलारे वाजपेयी": अवतरणों में अंतर
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== लेखन-कार्य ==
वाजपेयी जी ने अनेक आलोचनात्मक कृतियों की रचना की है; हालाँकि उन्होंने एकमात्र प्रेमचन्द पर केंद्रित पुस्तक को छोड़कर व्यवस्थित रूप से अन्य किसी पुस्तक का लेखन नहीं किया है।<ref>''नन्ददुलारे वाजपेयी'', प्रेमशंकर, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-1983, पृष्ठ-26.</ref> उनके लेखन में निबंधों की प्रधानता है जिन्हें संकलित कर उन्होंने पुस्तकों का रूप दिया है।<ref>''नन्ददुलारे वाजपेयी'', प्रेमशंकर, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-1983, पृष्ठ-34.</ref> विभिन्न समय में स्वतंत्र रूप से लिखे गये जो निबंध किन्ही विशिष्ट साहित्यकार पर केंद्रित थे उन्हें बाद में एकत्र कर उस साहित्यकार के नाम से पुस्तक रूप में प्रकाशित किये गये। 'जयशंकर प्रसाद', 'महाकवि सूरदास', 'कवि निराला' एवं 'सुमित्रानंदन पंत' आदि पुस्तकें इसी तरह के संकलन हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न साहित्यकारों पर समय-समय पर लिखे गये कुछ निबंध तथा विभिन्न मुद्दों पर लिखे गये निबंधों के संकलन आरंभ में 'हिन्दी साहित्य : बीसवीं शताब्दी' के नाम से और बाद में 'आधुनिक साहित्य', 'नया साहित्य : नये प्रश्न' आदि नामों से पुस्तक रूप में संकलित किये गये हैं। १९६७ में उनके निधन के उपरांत भी इसी ढंग पर उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकांश का संपादन डॉ॰ शिवकुमार मिश्र ने किया है। प्रायः इन सबमें कुछ अप्रकाशित सामग्री है और कुछ पूर्व प्रकाशित। सबको मिलाकर पुस्तक को एक नया व्यक्तित्व देने का प्रयत्न किया गया है।<ref>''नन्ददुलारे वाजपेयी'', प्रेमशंकर, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-1983, पृष्ठ-28.</ref>
नंददुलारे वाजपेयी शुक्लोत्तर समीक्षा को संचालित करने वाले प्रमुख आलोचक माने जाते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल अपने युग की मुख्य काव्य-धारा 'छायावाद' को अपेक्षित सहानुभूति नहीं दे सके थे। अनेक पुराणपंथी लेखक भी छायावाद के खिलाफ थे। ऐसे समय में वाजपेयी जी ने आगे बढ़कर छायावाद को प्रतिष्ठित करने में अग्रणी भूमिका निभायी। प्रसाद-निराला-पंत को उन्होंने हिन्दी कवियों की वृहत्त्रयी के रूप में स्थापित किया।<ref>''नंददुलारे वाजपेयी रचनावली'', प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, अंतिम आवरण पृष्ठ पर उल्लिखित।</ref>
उनका सर्वाधिक महत्त्व आधुनिक साहित्य के मूल्यांकन के लिए दृष्टि के नवोन्मेष के कारण है। इस दृष्टि से उनकी सुप्रसिद्ध पुस्तक हिंदी साहित्य बीसवीं शताब्दी को युगांतरकारी पुस्तक के रूप में स्मरण किया जाता है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक ग्रंथों का संपादन किया है। इन संपादित ग्रंथों की भूमिका मात्र से उनकी सूक्ष्म एवं तार्किक दृष्टि का सहज ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है। समग्रत: छायावाद युग आचार्य वाजपेयी के समग्र व्यक्तित्व की संश्लिष्टि है, उसमें उनकी क्रांतदर्शी प्रज्ञा तथा अतलभेदिनी अंतर्दृष्टि विद्यमान है।
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