"नंददुलारे वाजपेयी": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
→लेखन-कार्य: नयी सामग्री जोड़ी। |
→लेखन-कार्य: सन्दर्भ जोड़ा। |
||
पंक्ति 53:
नंददुलारे वाजपेयी शुक्लोत्तर समीक्षा को संचालित करने वाले प्रमुख आलोचक माने जाते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल अपने युग की मुख्य काव्य-धारा 'छायावाद' को अपेक्षित सहानुभूति नहीं दे सके थे। अनेक पुराणपंथी लेखक भी छायावाद के खिलाफ थे। ऐसे समय में वाजपेयी जी ने आगे बढ़कर छायावाद को प्रतिष्ठित करने में अग्रणी भूमिका निभायी। प्रसाद-निराला-पंत को उन्होंने हिन्दी कवियों की वृहत्त्रयी के रूप में स्थापित किया।<ref>''नंददुलारे वाजपेयी रचनावली'', प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, अंतिम आवरण पृष्ठ पर उल्लिखित।</ref>
उनका सर्वाधिक महत्त्व आधुनिक साहित्य के मूल्यांकन के लिए दृष्टि के नवोन्मेष के कारण है। इस दृष्टि से उनकी सुप्रसिद्ध पुस्तक हिंदी साहित्य बीसवीं शताब्दी को युगांतरकारी पुस्तक के रूप में स्मरण किया जाता है।<ref>''नंददुलारे वाजपेयी रचनावली'', प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-186.</ref>
इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक ग्रंथों का संपादन किया है। इन संपादित ग्रंथों की भूमिका मात्र से उनकी सूक्ष्म एवं तार्किक दृष्टि का सहज ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है। समग्रत: छायावाद युग आचार्य वाजपेयी के समग्र व्यक्तित्व की संश्लिष्टि है, उसमें उनकी क्रांतदर्शी प्रज्ञा तथा अतलभेदिनी अंतर्दृष्टि विद्यमान है।
|