"नंददुलारे वाजपेयी": अवतरणों में अंतर
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नंददुलारे वाजपेयी का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] में [[उन्नाव]] जिले के मगरायर नामक ग्राम में 4 सितंबर सन् 1906 ई॰ को हुआ था।<ref>''आलोचक का स्वदेश'', विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-289.</ref><ref>''नंददुलारे वाजपेयी रचनावली'', प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-43.</ref> उनके पिता का नाम गोवर्धनलाल वाजपेयी तथा माता का नाम जनकदुलारी था। विद्यारंभ पिता की देखरेख में हुआ। आर्यसमाज विश्वास रखने वाले पिता ने बालक नंददुलारे को सात वर्ष की अवस्था में पाणिनि की 'अष्टाध्यायी' कंठस्थ करा दी थी और फिर अमरकोश के मुख्य अंश भी याद करा दिये थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा [[हज़ारीबाग|हजारीबाग]] में संपन्न हुई। सातवें वर्ष में वे हजारीबाग के मिशन हाई स्कूल में नियमित शिक्षा के लिए भर्ती हुए थे और पन्द्रहवें वर्ष में वहीं से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा अच्छे अंको से उत्तीर्ण की थी। सन 1922 में हजारीबाग के संत कोलंबस कॉलेज में विज्ञान के विद्यार्थी के रूप में प्रवेश लिया और साल भर पढ़ने के बाद अपनी रोटियों को देखते हुए कला के विषयों को भी समन्वित कर लिया 1925 में वहीं से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिए [[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय|काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] आ गये। 1927 में बी॰ए॰ की परीक्षा में संपूर्ण विश्वविद्यालय में चौथे स्थान पर आये लेकिन एम॰ए॰ की परीक्षा में, 1929 में, द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्णता प्राप्त की।<ref>''आलोचक का स्वदेश'', विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-290.</ref><ref>''नंददुलारे वाजपेयी रचनावली'', प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-44.</ref>
उनका विवाह श्रीमती सावित्री देवी से 1925 के जनवरी माह में हुआ था। सन् 1936 में उनके प्रथम पुत्र स्वस्ति कुमार वाजपेयी का जन्म हुआ। इसके बाद 1941 में पुत्री पद्मा व 1945 में दूसरे पुत्र सुनृत कुमार का जन्म हुआ।<ref name="स्वदेश">''आलोचक का स्वदेश'', विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-292-293.</ref><ref name="रचनावली-1">''नंददुलारे वाजपेयी रचनावली'', प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-46-47.</ref>
वे 1930-1932 में दो वर्षों से कुछ अधिक समय तक "[[भारत]]", के संपादक रहे। इसके बाद लगभग चार वर्षों तक उन्होंने [[नागरीप्रचारिणी सभा|काशी नागरीप्रचारिणी सभा]] में "[[सूरसागर]]" का तथा बाद में [[गीताप्रेस|गीता प्रेस]], [[गोरखपुर]] में [[श्रीरामचरितमानस|रामचरितमानस]] का संपादन किया। वाजपेयी जी
शुक्लोत्तर समीक्षा को नया संबल देनेवाले स्वच्छंदतावादी समीक्षक आचार्य वाजपेयी का आगमन [[छायावाद]] के उन्नायक के रूप में हुआ था। उन्होंने छायावाद द्वारा हिंदीकाव्य में आए नवोन्मेष का, नवीन सौंदर्य का स्वागत एवं सहृदय मूल्याकंन किया। अपने गुरु [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य शुक्ल]] से बहुत दूर तक प्रभावित होते हुए भी उन्होंने [[काव्यशास्त्र|भारतीय काव्यशास्त्र]] की आधारभूत मान्यताओं के माध्यम से युग की संवेदनाओं को ग्रहण करते हुए, कवियों, लेखकों या कृतियों की वस्तुपरक आलोचनाएँ प्रस्तुत कीं। वे [[भाषा]] को साध्य न मानकर साधन मानते थे।
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