"नंददुलारे वाजपेयी": अवतरणों में अंतर

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वे 1930-1932 में दो वर्षों से कुछ अधिक समय तक "[[भारत]]", के संपादक रहे। इसके बाद लगभग चार वर्षों तक उन्होंने [[नागरीप्रचारिणी सभा|काशी नागरीप्रचारिणी सभा]] में "[[सूरसागर]]" का तथा बाद में [[गीताप्रेस|गीता प्रेस]], [[गोरखपुर]] में [[श्रीरामचरितमानस|रामचरितमानस]] का संपादन किया। वाजपेयी जी जुलाई 1941 से फरवरी 1947 तक [[काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय|काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक रहे तथा मार्च 1947 से सितंबर 1965 तक [[डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय|सागर विश्वविद्यालय]] के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे।<ref name="स्वदेश" /><ref name="रचनावली-1" /> 1 अक्टूबर 1965 से वे [[विक्रम विश्वविद्यालय]], [[उज्जैन]] के उपकुलपति नियुक्त हुए। 21 अगस्त 1967 को उज्जैन में हिन्दी के इस वरिष्ठ आलोचक का हृदयाघात के कारण अचानक निधन हो गया।
 
शुक्लोत्तर समीक्षा को नया संबल देनेवाले स्वच्छंदतावादी समीक्षक आचार्य वाजपेयी का आगमन [[छायावाद]] के उन्नायक के रूप में हुआ था। उन्होंने छायावाद द्वारा हिंदीकाव्य में आए नवोन्मेष का, नवीन सौंदर्य का स्वागत एवं सहृदय मूल्याकंन किया। अपने गुरु [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य शुक्ल]] से बहुत दूर तक प्रभावित होते हुए भी उन्होंने [[काव्यशास्त्र|भारतीय काव्यशास्त्र]] की आधारभूत मान्यताओं के माध्यम से युग की संवेदनाओं को ग्रहण करते हुए, कवियों, लेखकों या कृतियों की वस्तुपरक आलोचनाएँ प्रस्तुत कीं। वे [[भाषा]] को साध्य न मानकर साधन मानते थे।
 
== लेखन-कार्य ==