"भारतीय संविधान की उद्देशिका": अवतरणों में अंतर

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== उद्देशिका संविधान के एक भाग के रूप में ==
''' परम्परागत मत''' -- उद्देशिका को संविधान का भाग नहीं मानता है क्योंकि यदि इसे विलोपित भी कर दे तो भी संविधान अपनी विशेष स्थिति बनाये रख सकता है। इसे पुस्तक के पूर्व परिचय की तरह समझा जा सकता है यह मत सर्वोच्च न्यायालय ने '''बेरुबारी यूनियन वाद 1960''' में प्रकट किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहाँ संविधान की भाषा संदिग्ध हो, वहाँ प्रस्तावना विविध निर्वाचन में सहायता करती है। इसीलिए "विधायिका" प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती।
 
'''नवीन मत'''-- इसे संविधान का एक भाग बताता है [[केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य|केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य 1973]] में दिये निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान का भाग बताया है। संविधान का एक भाग होने के कारण ही संसद ने इसे 42वें संविधान संशोधन से इसे सशोधित किया था तथा समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंण्डता शब्द जोड़ दिये थे। वर्तमान में नवीन मत ही मान्य है।