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'''स्वामी''' नाथकिसी योगीसंन्यासी संतोया कोयोगी कहाको जाताकहते हैं जो किसी धार्मिक/पंथपंथिक समुदाय में दीक्षित हो गये हों। सबसे पहले 'स्वामी' शब्द का उपयोग नाथउनके संप्रदायलिये केहुआ संतोंथा कोजो बोला[[आदि गयाशंकराचार्य]] नाथद्वारा काआरम्भ अर्थकिये स्वामी बाद में पत्नियां अपने पति को प्राण नाथ व स्वामी बोल कर सम्भोदित करती थी । मालिक को भी सवामी बोला जाता हे ।गये [[अद्वैत वेदान्त|अद्वैत वेदान्ती]] सम्प्रदाय में दीक्षा लेते थे।
 
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
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स्वामी का सामान्य अर्थ है कि जिसने स्वयं के मन को वश में कर लिया हो अर्थात वह स्वयं के मन का स्वामी है। जिसने स्वयं की पांचों इंद्रियों को वश में कर लिया हो। वह एक योगी, संत व सामान्य गृहस्थी भी हो सकता है।