"द्वैध शासन": अवतरणों में अंतर

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उदाहरण के लिए, 1765 में बंगाल, बिहार और उड़ीसा में भू-राजस्व वसूलने का अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी के पास था जबकि प्रशासन बंगाल के नवाब के नाम से चलता था। अतः सत्ता के दो केंद्र थे। बंगाल में द्वेध शासन का जनक रोबर्ट क्लाइम को कहा जाता है।
 
==१९१९1919 का द्वैध शासन==
{{मुख्य|भारत सरकार अधिनियम, १९१९}}
१९१९1919 ई. के [[भारत सरकार अधिनियम]] (गवर्नमेन्टगवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट) द्वारा प्रांतीय सरकार को मजबूत बनाया गया और द्वैध शासन की स्थापना की गई। इसके पहले प्रांतीय सरकारों पर केंद्र सरकार का पूर्ण नियंत्रण रहता था। लेकिन अब इस स्थिति में परिवर्तन लाकर प्रान्तीय सरकारों को उत्तरदायी बनाने का प्रयास किया गया। कथित तौर पर इस द्वैध शासन का एकमात्र उद्देश्य था – भारतीयों को पूर्ण उत्तरदायी शासन के लिए प्रशासनिक शिक्षा देना। द्वैध शासन के प्रयोग ने भारत में एक नया ऐतिहासिक अध्याय प्रारंभ किया। असम, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, बम्बईबंबई, मध्य प्रांत, पंजाब, मद्रास, संयुक्त प्रांत और बर्मा में यह नयी व्यवस्था लागू की गयी।
 
इस अधिनियम द्वारा केंद्र एवं प्रान्तोंप्रांतों के बीच विषयों का बँटवारा किया गया और जो विषय भारत के हित में थे, उन्हें केन्द्रीयकेंद्रीय सरकार के अधीन रखा गया। प्रतिरक्षा, यातायात, विदेश नीति, सीमा शुल्क, मुद्रा, सार्वजनिक ऋण इत्यादि को केन्द्रीयकेंद्रीय विषय में सम्मिलित किया गया। स्थानीय स्वशासन सार्वजनिक, स्वास्थ्य, सफाई और शिक्षा, पुलिस, जेल तथा सहकारिता आदि को प्रांतीय विषय के अधीन रखा गया।
 
द्वैध शासन असफल रहा जिसके कई कारण थे। यह गलत सिद्धान्तसिद्धांत पर आधारित था और प्रांतीय विषयों का विभाजन दोषपूर्ण था। गवर्नर को कोई वास्तविक अधिकार नहीं दिया गया था। प्रांतीय सरकार को हमेशा वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था और सुधारों के प्रति हमेशा ब्रिटिश सरकार की उदासीन नीति के कारण द्वैध शासन सफल नहीं हो सका। इस व्यवस्था में सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना का पूर्णतया अभाव था और मंत्री तथा लोकसेवकों के बीच बराबर तनावपूर्ण सम्बन्ध बना रहता था। इस प्रकार आंशिक उत्तरदायी शासन यानी द्वैध शासन हर दृष्टिकोण से असफल रहा। यह एक अधूरी योजना थी जो भारत के लिए एक मजाक का विषय ही बनी रही। इसने खुद सरकार के अन्दरअंदर ही कई मतभेद पैदा कर दिए।
 
===द्वैध शासन के अंतर्गत नियम=== शासन का सिद्धांत प्रांतीय सरकार की कार्यकारी शाखा को अधिकारिक और लोकप्रिय रूप से जिम्मेदार वर्गों में विभाजन को मान्यता देता है। ब्रिटिश भारत के प्रांतों के लिए द्वैध शासन भारत सरकार अधिनियम 1919 द्वारा प्रारंभ किया गया था।