"गोलमेज सम्मेलन (भारत)": अवतरणों में अंतर

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[[दाण्डी आन्दोलन|नमक यात्रा]] के कारण ही अंग्रेजो यह अहसास हुआ था कि अब उनका राज बहुत दिन नहीं टिक सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में गोल मेज सम्मेलनों का आयोजन शुरू किया। अंग्रेज़ सरकार द्वारा भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 1930-32 के बीच सम्मेलनों की एक श्रृंखला के तहत तीन '''गोलमेज सम्मेलन''' आयोजित किये गए थे। ये सम्मलेन मई 1930 में [[साइमन कमीशन|साइमन आयोग]] द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट के आधार पर संचालित किये गए थे। भारत में [[स्वराज]], या स्व-शासन की मांग तेजी से बढ़ रही थी। 1930 के दशक तक, कई ब्रिटिश राजनेताओं का मानना था कि भारत में अब स्व-शासन लागू होना चाहिए। हालांकि, भारतीय और ब्रिटिश राजनीतिक दलों के बीच काफी वैचारिक मतभेद थे, जिनका समाधान सम्मलेनों से नहीं हो सका। प्रथम गोलमेज सम्मेलन का नेतृत्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था।
 
== प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवंबर 1930 - 19 जनवरी 1931) ==
पहला गोल मेज सम्मेलन नवम्बर [[१९३०|1930]] में आयोजित किया गया जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए, इसी कारण अंतत: यह बैठक निरर्थक साबित हुई। यह आधिकारिक तौर पर [[जॉर्ज पंचम]] ने 12 नवम्बर 1930 को प्रारम्भ किया और इसकी अध्यक्षता ब्रिटेन के प्रधानमंत्री, [[रामसे मैकडॉनल्ड]] ने की। तीन ब्रिटिश राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व सोलह प्रतिनिधियों द्वारा किया गया। अंग्रेजों द्वारा शासित भारत से ५७ राजनीतिक नेताओं और रियासतों से १६ प्रतिनिधियों ने भाग लिया। हालांकि, [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] और व्यापारिक नेताओं ने सम्मलेन में भाग नहीं लिया। उनमें से कई नेता [[दांडी मार्च|सविनय अवज्ञा आन्दोलन]] में भाग लेने के कारण जेल में थे।