"चारण (जाति)": अवतरणों में अंतर

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== भारतीय साहित्य में योगदान==
एकचारण पूरी शैलीसाहित्य, साहित्य की एक विधा के रूप में जाना जाता है चरण साहित्यसुस्थापित है। के [//en.wikipedia.org/wiki/Dingal Dingal][डिंगल भाषा]] और साहित्य के बड़े पैमानेका परअस्तित्व मौजूदमुख्यतः होनेचारणों के कारण इस जाति है। झावरचन्द [//en.wikipedia.org/wiki/Jhaverchand_Meghaniमेघानी Zaverchandने Meghani]चारण बितातेसाहित्य हैंको Charani साहित्य (साहित्य)उपविधाओं में तेरहविभाजित उपशैलियों:किया है।
* प्रशंसा में गीत के देवी देवताओं (''stavan'')
* प्रशंसा में गीत के नायकों, संतों और संरक्षक (''birdavalo'')
* विवरण के युद्ध (''varanno'')
* Rebukes के ढुलमुल महान राजाओं और पुरुषों के लिए जो उनकी शक्ति का उपयोग बुराई के लिए (''upalambho'')
* मजाक का एक स्थायी विश्वासघात की वीरता (''thekadi'')
* प्रेम कहानियों
* अफसोस जताया के लिए मृत योद्धाओं, संरक्षक और दोस्तों (''marasiya'' या ''vilap काव्य'')
* प्रशंसा के प्राकृतिक सौंदर्य, मौसमी सुंदरता और त्योहारों
* विवरण हथियारों के
* गीत की प्रशंसा में शेर, घोड़े, ऊंट और भैंस
* बातें के बारे में शिक्षाप्रद और व्यावहारिक चतुराई
* प्राचीन महाकाव्यों
* गाने का वर्णन पीड़ा में लोगों की अकाल के समय और प्रतिकूल परिस्थितियों
अन्य वर्गीकरण के Charani साहित्य हैं Khyatas (इतिहास), Vartas और Vatas (कहानियां), रासो (मार्शल महाकाव्यों), Veli - ''Veli कृष्ण Rukman री'', दोहा-छंद (छंद).
*सुखवीर सिहँ कविया की राजस्थानी भाषा में कविताएँ वर्तमान समय मे भाषा को अधिकार व मान्यता दिलाने की बात करती है -
मीठो गुड़ मिश्री मीठी, मीठी जेडी खांड
मीठी बोली मायडी और मीठो राजस्थान ।।
 
*(१) '''स्तवन''' - देवी-देवताओं की स्तुतियाँ
गण गौरैयाँ रा गीत भूल्या
भूल्या गींदड़ आळी होळी नै,
के हुयो धोरां का बासी,
क्यूँ भूल्या मायड़ बोली नै ।।
 
*(२) '''बीरदवालो''' - नायकों, सन्तों और संरक्षकों की प्रसंशा
कालबेलियो घुमर भूल्या
नखराळी मूमल झूमर भूल्या
लोक नृत्य कोई बच्या रे कोनी
क्यू भूल्या गीतां री झोळी नै,
कै हुयो धोरां का बासी
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
 
*(३) '''वरन्नो''' - युद्ध का वर्णन
जी भाषा में राणा रुओ प्रण है
जी भाषा में मीरां रो मन मन है
जी भाषा नै रटी राजिया,
जी भाषा मैं हम्मीर रो हट है
धुंधली कर दी आ वीरां के शीस तिलक री रोळी नै,
के हुयो धोरां का बासी,
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
 
*(४) '''उपलम्भो''' - उन राजाओं की आलोचना/निन्दा जो अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके कोई गलत कार्य करते हैं।
घणा मान रीतां में होवै
गाळ भी जठ गीतां में होवे
प्रेम भाव हगळा बतलाता
क्यू मेटि ई रंगोंळी नै,
के हुयो धोरां का बासी
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
 
*(५) '''थेकड़ी''' - किसी महनायक के साथ किए गए विश्वासघात का मजाक उड़ाना
पीर राम रा पर्चा भूल्या
माँ करणी री चिरजा भूल्या
खम्माघणी ना घणीखम्मा है
भूल्या धोक प्रणाम हमझोळी नै
के हुयो धोरां का बासी,
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
 
*(६) प्रेमकथाएँ
बिन मेवाड़ी मेवाड़ कठै
मारवाड़ री शान कठै
मायड़ बोली रही नहीँ तो
मुच्चयाँळो राजस्थान कठै ।।
 
*(७) '''मरसिया या विलाप-काव्य''' -- योद्धाओं, संरक्षको या मित्रों की मृत्यु पर दुःख व्यक्त करने के लिए
(थारी मायड़ करे पुकार जागणु अब तो पड़सी रै - Repeat )
 
*(८) प्राकृतिक सुन्दरता का वर्णन, ऋतु वर्णन, उत्सव वर्णन
- सुखवीर सिंह कविया
 
*(९) अस्त्र-शस्त्र का वर्णन
 
*(१०) सिंह (शेर), घोड़े, ऊँट और भैंसों की प्रसंसा
 
*(११) शिक्षाप्रद एवं व्यावहारिक चतुराई से सम्बन्धित कहावतें
 
*(१२) प्राचीन महाकाव्य
 
*(१३) अकाल और दुर्दिन के समय प्रजा की पीड़ा का वर्णन
 
चारणी साहित्य का एक अन्य वर्गीकरण यह है-
* ख्यात (इतिहास)
* वार्ता या वाता (कथाएँ)
* रासो (सैन्य महाकाव्य)
* वेली
 
== सन्दर्भ ==