"काल भैरव मंदिर, उज्जैन": अवतरणों में अंतर

Not change I put some new story and historical story of Kaal bhairav mandir And this is a true
टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
अनुनाद सिंह के अवतरण 4174384पर वापस ले जाया गया : Reverted (ट्विंकल)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 1:
[[File:Kal Bhairav temple Ujjain.jpg|thumb|right|काल भैरव मंदिर]]
[[File:Kal Bhairav Ujjain - Puja basket.jpg|thumb|right|फूल-मदिरा]]
'''काल भैरव मंदिर''', [[उज्जैन]] स्थित एक हिन्दू मंदिर है जो कि भगवान काल भैरव को समर्पित है। यह [[महाकाल मंदिर]] से लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह दुनिया का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां पर भैरव भगवान भैरव पर मदिरा का चढ़ावा चढ़ाया जाता है । आपको इस मंदिर के बाहर में सभी सामग्री मिल जाएगी । इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको उज्जैन से हर संभव सहायता मिल जाएगी । बस ,टैक्सी ,मिल जाती हैं ।मंदिर परिसर बहुत ही अच्छा है
 
 
पंक्ति 7:
[[श्रेणी:मध्य प्रदेश के हिन्दू मंदिर]]
{{आधार}}इस मंदिर मे भक्त जो मदिरा चढ़ाते वो बाबा की मूर्ति मे समा जाती है वह कहा जाती है इसका पता आज तक कोई नहीं लगा सका है|
Mहमारे देश में ऐसे अनेक मंदिर हैं, जो अपनी अनोखी परंपरा व रहस्यों के लिए जाने जाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर है मप्र के उज्जैन में स्थित भगवान कालभैरव का। इस मंदिर के संबंध चमत्कारी बात ये है कि यहां स्थित कालभैरव की प्रतिमा मदिरा (शराब) का सेवन करती है लेकिन मदिरा जाती कहां है ये रहस्य आज भी बना हुआ है। प्रतिमा को मदिरा पीते हुए देखने के लिए यहां देश-दुनिया से काफी लोग पहुंचते हैं। भैरव अष्टमी के मौके पर हम आपको बता रहे हैं महाकाल के कोतवाल बाबा कालभैरव के बारे...
 
1) जानें मंदिर से जुड़ी खास बातें
 
भगवान कालभैरव का मंदिर क्षिप्रा नदी के किनारे भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां भगवान कालभैरव की प्रतिमा को शराब का भोग लगाया जाता है।
 
 
आश्चर्य की बात यह है कि देखते ही देखते वह पात्र जिसमें मदिरा का भोग लगाया जाता है, खाली हो जाता है। यह शराब कहां जाती है, ये रहस्य आज भी बना हुआ है। यहां रोज श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और इस चमत्कार को अपनी आंखों से देखती है।
कालभैरव को शराब अर्पित करते समय हमारा भाव यही होना चाहिए कि हम हमारी समस्त बुराइयां भगवान को समर्पित करें और अच्छाई के मार्ग पर चलने का संकल्प करें। मदिरा यानी सुरा भी शक्ति का ही एक रूप है। इस शक्ति का उपभोग नहीं किया जाना चाहिए। इसका उपभोग करने वाला व्यक्ति पथभ्रष्ट हो जाता है।
 
मंदिर के पुजारी के अनुसार इस मंदिर का वर्णन स्कंदपुराण के अवंति खंड में मिलता है। इस मंदिर में भगवान कालभैरव के वैष्णव स्वरूप का पूजन किया जाता है।
 
 
इस मंदिर से जुड़ी अनेक किवंदतियां भी प्रचलित हैं। जिनके अनुसार उज्जैन के राजा भगवान महाकाल ने ही कालभैरव को इस स्थान पर शहर की रक्षा के लिए नियुक्त किया है। इसलिए कालभैरव को शहर का कोतवाल भी कहा जाता है।
करीब एक दशक पहले मंदिर की इमारत को मजबूती देने के लिए बाहर की ओर निर्माण कार्य करवाया गया था। इस निर्माण के लिए मंदिर के चारों ओर करीब 12-12 फीट गहरी खुदाई की गई थी।
 
 
इस खुदाई का उद्देश्य मंदिर का जीर्णोद्धार करना था, लेकिन यह खुदाई देखने के लिए काफी लोग यहां पहुंचते थे। सभी जानना चाहते थे कि जब कालभैरव शराब का सेवन करते हैं तो वह शराब कहां जाती है।
इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए खुदाई कार्य के दौरान काफी लोग आए, लेकिन खुदाई में ऐसा कुछ नहीं मिला, जिससे लोगों के इस प्रश्न का समाधान हो सके।
इस मंदिर के बारे में कई किवंदतियां ऐसी भी हैं कि अनेक वैज्ञानिक इस मंदिर का रहस्य जानने के लिए आए, लेकिन वे भी इस चमत्कार के पीछे का कारण जान नहीं पाए।
भगवान कालभैरव का मंदिर मुख्य शहर से कुछ दूरी पर बना है। यह स्थान भैरवगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। कालभैरव का मंदिर एक ऊंचे टीले पर बना हुआ है, जिसके चारों ओर परकोटा (दीवार) बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर की इमारत का जीर्णोद्धार करीब एक हजार साल पहले परमार कालीन राजाओं ने करवाया था। इस निर्माण कार्य के मंदिर की पुरानी सामग्रियों का ही इस्तेमाल किया गया था। मंदिर बड़े-बड़े पत्थरों को जोड़कर बनाया गया था। यह मंदिर आज भी मजबूत स्थिति में दिखाई देता है।
 
कालभैरव मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर घुसते ही कुछ दूर चलकर बांई ओर पातालभैरवी का स्थान है। इसके चारों ओर दीवार है। इसके अंदर जाने का रास्ता बहुत ही संकरा है। करीब 10-12 सीढिय़ां नीचे उतरने के बाद तलघर आता है। तलघर की दीवार पर पाताल भैरवी की प्रतिमा अंकित है। ऐसी मान्यता है कि पुराने समय में योगीजन इस तलघर में बैठकर ध्यान करते थे।
 
कालभैरव मंदिर से कुछ दूरी पर विक्रांत भैरव का मंदिर स्थित है। यह मंदिर तांत्रिकों के लिए बहुत ही विशेष है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर की गई तंत्र क्रिया कभी असफल नहीं होती। यह मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। विक्रांत भैरव के समीप ही श्मशान भी है। श्मशान और नदी का किनारा होने से यहां दूर-दूर से तांत्रिक तंत्र सिद्धियां प्राप्त करने आते हैं।
 
इस मंदिर में भगवान कालभैरव की प्रतिमा सिंधिया पगड़ी पहने हुए दिखाई देती है। यह पगड़ी भगवान ग्वालियर के सिंधिया परिवार की ओर से आती है। यह प्रथा सैकड़ों सालों से चली आ रही है।
 
 
इस संबंध में मान्यता है कि करीब 400 साल पहले सिंधिया घराने के राजा महादजी सिंधिया शत्रु राजाओं से बुरी तरह पराजित हो गए थे। उस समय जब वे कालभैरव मंदिर में पहुंचे तो उनकी पगड़ी यहीं गिर गई थी। तब महादजी सिंधिया ने अपनी पगड़ी भगवान कालभैरव को अर्पित कर दी और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान से प्रार्थना की।
इसके बाद राजा ने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की और लंबे समय तक कुशल शासन किया। भगवान कालभैरव के आशीर्वाद से उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी कोई युद्ध नहीं हारा। इसी प्रसंग के बाद से आज भी ग्वालियर के राजघराने से ही कालभैरव के लिए पगड़ी आती है।