"वार्ता:आसफ़ुद्दौला": अवतरणों में अंतर

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«[[सदस्य:आलोक|आलोक]]» ([[सदस्य_वार्ता:आलोक|⍨]], [[विशेष:Contributions/आलोक|⌣]]) ⌛ ०४:२०, २४ सितंबर २००९ (UTC)
:हां, ये सुझाव मैंने ही दिया था। चित्र दीर्घा सामान्यतया चार चित्रों को एक लाइन में लगाने हेतु बनायी गयी होती है (डीफॉल्ट में)। तब यदि हम चित्र चार के गुणकों में ही लगा पायें तो बेहतर होता है। यहां इस लेख में नौंवां चित्र अलग थलग लगा है, और वास्तु शूर्षक में कोई चित्र भी नहीं है। तो बेहतर होगा कि इमामबाड़े का चित्र हटा कर दीर्घा में मात्र ८ चित्र छोड़ें, व उस चित्र को वास्तु शीर्षक में लगाया जाये।किंतुजाये। किंतु ये सब मैं आलोक जी खीकी वार्ता पर पहले ही बता चुका हूं। मेरे विचार से यदि वो इस चर्चा को यहां लगाना चाहते हैं, तो मेरा वार्ता अंश भी लगाया जा सकता था। बजाय इसके कि मैं पुरी बात दोबारा यहां दोहराऊं।--<small><span style="border:1px solid #0000ff;padding:1px;">[[User:आशीष भटनागर|<b>आशीष भटनागर</b>]][[User_talk:आशीष भटनागर|<font style="color:#FF4F00;background:#4B0082;"> &nbsp;वार्ता&nbsp;</font>]] </span></small> ०४:२७, २४ सितंबर २००९ (UTC)
 
:: '''''मेरा वार्ता अंश'''''
::जी हाँ बिल्कुल। मैंने आपकी वार्ता की कड़ी लगाई थी पर शायद परंपरा कटचिप्पी करने की है तो आगे वैसा ही करूँगा।
::«[[सदस्य:आलोक|आलोक]]» ([[सदस्य_वार्ता:आलोक|⍨]], [[विशेष:Contributions/आलोक|⌣]]) ⌛ ०४:३४, २४ सितंबर २००९ (UTC)
:::ऐसी कोई परंपरा नहीं है, ये तो बस प्रक्रिया सरल करने का तरीका मात्र है। इसके लिए कोई नियम लिखित नहीं है, बस सरलता ही कुंजी और उद्देश्य है।--<small><span style="border:1px solid #0000ff;padding:1px;">[[User:आशीष भटनागर|<b>आशीष भटनागर</b>]][[User_talk:आशीष भटनागर|<font style="color:#FF4F00;background:#4B0082;"> &nbsp;वार्ता&nbsp;</font>]] </span></small> ०४:४१, २४ सितंबर २००९ (UTC)
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