"अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता": अवतरणों में अंतर
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[[भारतीय संविधान]] वाक-स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य की प्रत्याभूति देता है। किंतु इस स्वतंत्रता पर राज्य द्वारा युक्तियुक्त निर्बन्धन इन बातों के संबंध में लगाए जा सकते हैं (क) मानहानि, (ख) न्यायालय-अवमान, (ग) शिष्टाचार या सदाचार, (घ) राज्य की सुरक्षा, (ङ) विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, (च) अपराध-उद्दीपन, (छ) लोक व्यवस्था, (ज) भारत की प्रभुता और अखंडता(16वां संविधान संशोधन 1963 से जोड़ा गया)।<ref>{{Cite web |url=https://en.wikisource.org/wiki/Constitution_of_India/Part_III |title=संग्रहीत प्रति |access-date=3 दिसंबर 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20150907145210/https://en.wikisource.org/wiki/Constitution_of_India/Part_III |archive-date=7 सितंबर 2015 |url-status=live }}</ref>
भारत संघ बनाम नवीन जिन्दल! के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि अपने मकान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का प्रत्येक नागरिक का अनुच्छेद19(1)(a) के अधीन एक मूल अधिकार है। किन्तु यह अधिकार आत्यन्तिक(absolute) नहीं है और इस पर अनुच्छेद19(1)(a) के खण्ड (2) के अन्तर्गत युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाए जा सकते हैं। इस मामले में प्रत्यर्थी नवीन जिंदल ने अपने कारखाने के परिसर में स्थित आफिस पर राष्ट्रीय ध्वज लगाया था इसे सरकार ने इसलिए रोक दिया था क्योंकि यह भारत के फ्लैग कोड के अन्तर्गत वर्जित था। न्यायालय ने निर्णय दिया कि अपने मकान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराना अनुच्छेद19(1)(a) के अधीन मूल अधिकार है क्योंकि इसके माध्यम से वह राष्ट्र के प्रति अपनी भावनाओं और वफादारी के भाव का प्रकटीकरण करता है किन्तु यह अधिकार आत्यन्तिक नहीं है और इस पर युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाए जा सकते हैं। फ्लैग कोड यद्यपि अनुच्छेद13(3)(a) के अधीन "विधि" नहीं है किन्तु इसमें विहित मार्गदर्शक सिद्धान्त जो राष्ट्रीय ध्वज के आदर और गरिमा को संजोये (preserve) रखने के लिए उपबन्धित है को मानना आवश्यक है। राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना प्रत्येक नागरिक का मूल कर्तव्य है। इसके लिए कानून बनाने की न्यायालय ने कोई सिफारिश नहीं की। दी इम्बलसस एण्ड नेम्स (प्रिवेन्सन ऑफ इन्प्रापर यूज) एक्ट, 1956 और दी प्रिवेन्सन ऑफ इनसल्ट्स टू नेशनल आनर एक्ट, 1971 राष्ट्रीय ध्वज के प्रयोग को विनियमित करते हैं।
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