"टिहरी गढ़वाल जिला": अवतरणों में अंतर

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[[File:Tehri Dam lake.jpg|thumb|[[टिहरी बाँध]] की झील]]
===दल्ला आरगढ़===
घनसाली से करीब 15 किमी की दूरी पर बसा यह अत्यंत सुंदर गांव है, जो कि आरगढ़ पट्टी के अंतर्गत आता है,[[https://villageinfo.in/uttarakhand/tehri-garhwal/ghansali/dalla.html]] यह गांव स्वर्गीय श्री त्रेपन सिंह नेगी[[https://en.wikipedia.org/wiki/Trepan_Singh_Negi]] [[https://umjb.in/gyankosh/trepan-singh-rawat]] जी कि जन्मभूमि है जिन्होंने उत्तराखंड स्वतंत्रता संग्राम में बहुत योगदान दिया तथा बाद में टिहरी से सांसद भी रहे । हिमालय कि गोद में बसा यह ग्राम 3 दिशाओं से पर्वतों से घिरा है तथा अग्रपार्श्व में हिमालय की पहाड़ियों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है, यहां से कैलाश पर्वत कि चोटियां बहुत ही सुन्दर चांदी सी हिमाच्छादित प्रतीत होती है। पार्श्व में केमुंडा खाल [[http://www.peyjalmis.uk.gov.in/Boundry/SchemeAndProgramManagement/SchemeProfile.aspx?Id=8463]] स्थित है जो कि उत्तरकाशी एवं टिहरी गढ़वाल के बीच कि रेखा मानी जा सकती है यहां पर मां राजराजेश्वरी का मंदिर है जो कि श्रद्धालुओं में बहुत ही विख्यात है यहां पर बकरियों की बलि दी जाती थी जो कि कुछ वर्षों से प्रशासन द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई है। दल्ला ग्राम मे ईष्टदेव नागराजा का भव्य मंदिर है जिसमे किकी श्री सेम मुखेम नागराजा की पूजा की जाती है। स्थानीय लोगों द्वारा इस गांव को लिटिल मसूरी के नाम से भी जाना जाता है।
 
===श्री बूढ़ा केदार नाथ मंदिर ===
हमारे देश में अनेक प्रसिध्द तीर्थ स्थल एवम सुन्दतम स्थान है। जहाँ भ्रमण कर मनुष्य स्वयं को भूलकर परमसत्ता का आभास कर आनन्द की प्राप्ति करता है। केदारखंड का गढ़वाल हिमालय तो साक्षात देवात्मा है, जहाँ से प्रसिध्द तीर्थस्थल बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री के अलावा एक और परमपावन धाम है बूढ़ा केदारनाथ धाम जिसका पुराणो में अत्यधिक मह्त्व बताया गया है। इन चारों पवित्र धामॊं के मध्य वृद्धकेदारेश्वर धाम की यात्रा आवश्यक मानी गई है, फलत: प्राचीन समय से तीर्थाटन पर निकले यात्री श्री बूढ़ा केदारनाथ के दर्शन अवश्य करते रहे हैं। श्रीबूढ़ा केदारनाथ के दर्शन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। यह भूमि बालखिल्या पर्वत और वारणावत पर्वत की परिधि में स्थित सिद्धकूट, धर्मकूट, यक्षकूट और अप्सरागिरी पर्वत श्रेणियों की गोद में भव्य बालगंगा और धर्मगंगा के संगम पर स्थित है। प्राचीन समय में यह स्थल पाँच नदियों क्रमश: बालगंगा, धर्मगंगा, शिवगंगा, मेनकागंगा व मट्टानगंगा के संगम पर था। सिद्धकूट पर्वत पर सिद्धपीठ ज्वालामुखी का भव्य मन्दिर है। धर्मकूट पर महासरताल एवं उत्तर में सहस्रताल एवं कुशकल्याणी, क्यारखी बुग्याल है। यक्षकूट पर्वत पर यक्ष और किन्नरों की उपस्थिति का प्रतीक मंज्याडताल व जरालताल स्थित है। दक्षिण में भृगुपर्वत एवं उनकी पत्नी मेनका अप्सरा की तपोभूमि अप्सरागिरी श्रृंखला है, जिनके नाम से मेड गाँव व मेंडक नदी का अपभ्रंस रूप में विध्यामान है। तीन योजन क्षेत्र में फैली हुयी यह भूमि टिहरी रियासत काल में कठूड पट्टी के नाम से जानी जाती थी, जो सम्प्रति नैल्डकठूड, गाजणाकठूड व थातीकठूड इन तीन पट्टियों में विभक्त है। इन तीन पट्टियों का केन्द्र स्थल थातीकठूड है। नब्बे जोला अर्थात 180 गाँव को एकात्माता, पारिवारिकता प्रदान करने वाला प्रसिध्द देवता गुरुकैलापीर है, जिसका मुख्य स्थल (थात) यही भूमि है।