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== जीवनवृत्त ==
अभिनवगुप्त का जन्म [[कश्मीर]] में [[कश्मीरी ब्राह्मण]] कुल में दशम शताब्दी के मध्य भाग में हुआ था (लगभग 950 ई. - 960 ई. के बीच)। इनका कुल अपनी विद्या, विद्वता तथा तांत्रिक साधना के लिए कश्मीर में नितांत प्रख्यात था। इनके पितामह का नाम था [[वराहगुप्त]] तथा पिता का नरसिंहगुप्त जो लोगों में "चुखुल" या "चुखुलक" के घरेलू नाम से भी प्रसिद्ध थे। अभिनव में ज्ञान की इतनी तीव्र पिपासा थी कि इसकी तृप्ति के लिए इन्होंने कश्मीर के बाहर [[जलंधर|जालंधर]] की यात्रा की और वहाँ अर्धत्र्यंबक मत के प्रधान आचार्य शंभुनाथ से कौलिक मत के सिद्धांतों और उपासनातत्वों का प्रगाढ़ अनुशीलन किया। इन्होंने अपने गुरुओं के नाम ही नहीं दिए हैं, प्रत्युत उनसे अधीत शास्त्रों का भी निर्देश किया है। इन्होंने [[व्याकरण]] का अध्ययन अपने पिता नरसिंहगुप्त से, ब्रह्मविद्या का भूतिराज से, क्रम और त्रिक्दर्शनों का लक्ष्मण गुप्त से, ध्वनि का भट्टेंद्रराज से तथा [[नाट्य शास्त्र|नाट्यशास्त्र]] का अध्ययन भट्ट तोत (या तौत) से किया। इनके गुरुओं की संख्या बीस तक पहुँचती है।
 
भारत की ज्ञान-परंपरा में आचार्य अभिनवगुप्त एवं कश्मीर की स्थिति को एक ‘संगम-तीर्थ’ के रूपक से बताया जा सकता है। जैसे कश्मीर (शारदा देश) संपूर्ण भारत का ‘सर्वज्ञ पीठ’ है, वैसे ही आचार्य अभिनवगुप्त संपूर्ण भारतवर्ष की सभी ज्ञान-विधाओं एवं साधना की परंपराओं के सर्वोपरि समादृत आचार्य हैं। काश्मीर केवल शैवदर्शन की ही नहीं, अपितु बौद्ध, मीमांसक, नैयायिक, सिद्ध, तांत्रिक, सूफी आदि परंपराओं का भी संगम रहा है। आचार्य अभिनवगुप्त अद्वैत आगम एवं प्रत्यभिज्ञा-दर्शन के प्रतिनिधि आचार्य तो हैं ही, साथ ही उनमें एक से अधिक ज्ञान-विधाओं का भी समाहार है।