"काशीपुर का चैती मेला": अवतरणों में अंतर

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[[शाक्त सम्प्रदाय]] से सम्बन्धित अधिकांश मंदिरों में नवरात्रि में मेले लगते हैं, वैसे ही माँ बालासुन्दरी के इस मन्दिर में भी नवरात्रि में अष्टमी, नवमी व दशमी के दिन यहाँ श्रद्धालुओं का तो समुह ही उमड़ पड़ता है। नवरात्रि के अवसर पर यहाँ तरह-तरह की दुकानें भी मेले में लगती हैं। यहां देवी [[महाकाली]] के मंदिर में बलि भी चढाई जाती थी। अन्त में दशमी की रात्रि को बालासुन्दरी की डोली में बालासुन्दरी की सवारी अपने स्थाई भवन काशीपुर के लिए प्रस्थान करती है। प्राय: चैती मेले में पूरी ऊर्जा काशीपुर से डोला चैती मेला स्थान पर पहुँचने पर ही आती है। डोले में प्रतिमा को रखने से पूर्व अर्धरात्रि में पूजन होता है तथा बकरों का बलिदान भी किया जाता है। डोले को स्थान-स्थान पर श्रद्धालु रोककर पूजन अर्चन करते और भगवती को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। मेले का समापन इसके बाद ही होता है। जनविश्वास के अनुसार इन दिनों जो भी मनौती माँगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है।
 
== मन्दिर ==
इस स्थान पर भगवान विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से माता सती के अंगों को काट दिये जाने के बाद माता की दायीं भुजा यहां गिरी थी। तभी यहां माता की कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिला पर उनकी दायीं भुजा की आकृति गढी हुई है, उसी की पूजा की जाती है।<ref name="पहाड">{{cite web
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