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==कथा==
[[शान्तनु|शांतनु]] से [[सत्यवती]] का [[विवाह]] भीष्म की ही विकट प्रतिज्ञा के कारण संभव हो सका था। भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने और गद्दी न लेने का वचन दिया और सत्यवती के दोनों पुत्रों को राज्य देकर उनकी बराबर रक्षा करते रहे। दोनों के नि:संतान रहने पर उनके विधवाओं की रक्षा भीष्म ने की, परशुराम से युद्ध किया, [[उग्रायुद्ध]] का बध किया। फिर सत्यवती के पूर्वपुत्र [[वेदव्यास|कृष्ण द्वैपायन]] द्वारा उन दोनों की पत्नियों से [[पाण्डु|पांडु]] एवं [[धृतराष्ट्र]] का जन्म कराया। इनके बचपन में भीष्म ने [[हस्तिनापुर]] का राज्य संभाला और आगे चलकर कौरवों तथा पांडवों की शिक्षा का प्रबंध किया। महाभारत छिड़ने पर उन्होंने दोनों दलों को बहुत समझाया और अंत में विवश होकर कौरवों के सेनापति बने। युद्ध के अनेक नियम बनाने के अतिरिक्त इन्होंने [[अर्जुन]] से न लड़ने की भी शर्त रखी थी, पर महाभारत के दसवें दिन इन्हें अर्जुन पर [[बाण]] चलाना पड़ा। [[शिखण्डी|शिखंडी]] को सामने कर अर्जुन ने बाणों से इनका शरीर छेद डाला। बाणों की शय्या पर ५८ दिन तक पड़े पड़े इन्होंने अनेक उपदेश दिए। अपनी तपस्या और त्याग के ही कारण ये अब तक भीष्म पितामह कहलाते हैं। इन्हें ही सबसे पहले [[तर्पण]] तथा जलदान दिया जाता है।
== सन्दर्भ ==
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