==इतिहास==
प्राचीन काल में लिखने के लिए [[ताड़पत्र|ताड़पत्रों]] का प्रयोग किया जाता था ।था। इसके साथ-साथ [[ताम्रपत्र]], [[शिलालेख|शिलालेखों]], तथा [[लकड़ी]] पर भी लिखा जाता रहा है, जिससे उन्हें लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सके ।
इतिहासकारों के अनुसार सबसे पहले कागज़ का आविष्कार [[चीन]] में हुआ । [[201]] ई.पू. हान राजवंश के समय चीन के निवासी “त्साई-लुन” ने कागज़ का आविष्कार किया । इस आविष्कार से पहले [[बाँस]] पर और [[रेशम]] के कपड़े पर लिखा जाता था ।था। रेशम बहुत महँगा था और बाँस बहुत भारी इसलिए “त्साई-लुन” के मन में आया कि कुछ ऐसा बनाया जाए जो हल्का और सस्ता हो ।हो। तब उसने [[भांग]], [[शहतूत]] के पत्ते, पेड़ की छाल तथा अन्य तरह के रेशों से कागज़ का निर्माण किया ।किया। उसके बाद कागज़ का इस्तेमाल सम्पूर्ण विश्व में होने लगा इस अनोखे आविष्कार के लिए त्साई-लुन को “कागज़ का संत” कहा जाने लगा ।
कुछ इतिहासकारो का मत है कि कागज़ का पहला प्रयोग [[मिस्र]] में हुआ ।हुआ। पेपिरस एंटीकोरियम नामक घास द्वारा कागज़ बनाया गया जिसे पेपिरस या पेपिरी कहा जाता था। लेखक “नैश” के “एकूसोड्स” ग्रन्थ से पता चलता है कि ईशा से लगभग चौदह सौ वर्ष पूर्व मिस्र में पेपिरी का निर्माण हुआ ।हुआ। उसके बाद रोम के लोगों ने पेपिरी बनाई ।बनाई।
[[भारत]] में सबसे पहले कागज़ का निर्माण और प्रयोग [[सिन्धु सभ्यता]] के दौरान हुआ ।हुआ। आगे चलकर भारत में कागज़ बनाने का पहला कारखाना [[कश्मीर]] में “सुलतान जैनुल आबिदीन” (1417-1467 ई.में ) ने लगवाया। आधुनिक तकनीक पर आधारित कागज़ का सबसे पहला कारखाना [[हुगली नदी]] के तट पर 1870 में [[कलकत्ता]] के निकट ‘[[बाली]]’ नामक स्थान पर लगाया गया ।गया। इसके बाद [[टीटागढ़]] (1882), बंगाल (1887), [[जगाधरी]] (1925), [[गुजरात]] (1933) आदि प्रदेशों में कागज़ बनाने के कारखाने लगाए गए।
कागज़ मानव जीवन में बहुत महत्त्व रखता हैं ।हैं। आरम्भ में यह कागज हाथ से बनाया जाता था। बाद में कागज़ बनाने के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा ।लगा। आधुनिक समय में कागज बनाने की कई विधियाँ प्रचलित रही हैं । कागज़ कई प्रकार का होता है जैसे बैंक कागज़, बांड कागज़, बुक कागज़, चीनी कागज़, फोटो कागज़, इंकजेट कागज़, सूत कागज़, क्राफ्ट कागज़, ड्राइंग काज, वैक्स कागज़, वाल कागज़ आदि । आदि। कागज़ से विभिन्न प्रकार की उपयोगी वस्तुएँ जैसे किताबें ,कापियाँ, कलेंडर, बैग, पतंग, डायरी आदि बनाए जाते हैं। आज कागज का निर्माण मुख्यतः घास, बाँस, लकड़ी, पुराने कपड़ों, गन्ने की खोई से हो रहा हैं। कागज़ निर्माण में सेल्यूलोस बड़ी भूमिका निभाता है ।है। सेल्यूलोस एक विशेष प्रकार का रेशा हैं। सेल्यूलोस एक कार्बनिक यौगिक हैं। यह तीन प्रकार का होता है अल्फ़ा सेल्यूलोस, बीटा सेल्यूलोस, गामा सेल्यूलोस। रुई में 99 प्रतिशत अल्फ़ा सेल्यूलोस होता है । पौधों में सेल्यूलोस नाम का कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है जिससे पौधों की कोशिकाएँ बनती हैं । यह पेड़ के तने में पाया जाता है। जिस पौधे में सेल्यूलोस की मात्रा अच्छी होगी उससे उतना ही अच्छा कागज बनेगा । कपास में भी सेल्यूलोस बहुत मात्रा में होता हैं ।हैं। किन्तु महँगी होने के कारण कागज़ निर्माण में इसका इस्तेमाल नहीं होता ।होता। इसलिए कपास का प्रयोग कपड़ा बनाने में किया जाता है । पौधों में सेल्यूलोस के साथ-साथ लिग्रिन और पेक्टिन, खनिज लवण, वसा, गोंद, प्रोटीन, आदि भी पाया जाता है इसलिए वृक्ष के तने से सबसे अच्छा कागज़ बनता है । मुख्यतः बाँस, देवदार, भोज, पपलर, फ़र, सफेदा आदि वृक्षों के तने से कागज़ बनाया जाता हैं।
सबसे पहले वृक्ष के तने से छाल साफ़ कर ली जाती है। उसके बाद उसे चिप्पर मशीन द्वारा 3 सेंटीमीटर से 5.5 सेंटीमीटर के आकार में काट लिया जाता है । इसके बाद इन टुकड़ों को डाइजेस्टर में डाल दिया जाता है तथा व्हाइट लिकर रसायन डालकर इसे पकाया जाता है। पेपर मिल के इस भाग को पल्प मिल विभाग कहते हैं। अब डाइजेस्टर में यह टुकड़े लुगदी (पल्प) में परिवर्तित हो जाते हैं। इसके बाद इस लुगदी की क्लोरीन या आक्सीजन द्वारा सफाई (ब्लीचिंग) की जाती है। इस प्रक्रिया को ब्लीचिंग और क्लीनिंग कहते हैं । इसके बाद इसकी कुटाई (बीटिंग) और सफाई (रिफाइनिग ) की जाती है फिर इस लुगदी को स्टॉक सेक्शन में भेज दिया जाता है । । इस के बाद इस लुगदी में कागज़ के अनुसार रंग(डाई), पिग्मेंट और फ़िलर आदि मिलाया जाता है फिर इस लुदगी को सेंटी क्लीनर्स मशीन में सफाई करके, मशीन चेस्ट सेक्सन में भेज दिया जाता है । मशीन चेस्ट से इसे फैन पंप के माध्यम से पेपर मशीन के हेड बॉक्स में भेज दिया जाता है । जहाँ पर इसकी संघनता एक प्रतिशत से भी कम रखी जाती हैं । हेड बॉक्स से फिर यह वायर पर जाता है जहाँ इसका पानी अलग हो जाता है और पेपर की सीट बन जाती है। इसके बाद यह पेपर सीट जो प्रेस सेक्शन में चली जाती है और फिर ड्रायर से गुजरने के बाद यह सूख जाती हैं। तब यह कागज़ कलेंडर, सुपर कलेंडर से होकर पॉप रील पर इकट्ठा हो जाता है। पॉप रील से पेपर के बड़े रोल को रिवाइडर की मदद से छोटे पेपर रोल्स में रिवाइड करके और कटर की मदद से इसे अलग-अलग आकार के पेपर साइज़ में काट कर फिनिशिंग सक्शन में भेज देते हैं। इस प्रकार अनेक प्रक्रियाओं से गुजरकर यह कागज़ हम तक पहुँच जाता हैं ।
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